ऊधौ यह राधा सौ कहियौ।
जैसी कृपा स्याम मोहिं कीन्ही, आप करत सोइ रहियौ।।
मो पर रिस पावतिं विनु कारन, मैं हौ तुम्हरी दासी।
तुमहीं मन मैं गुनि धौ देखौ, बिनु तप पायौ कासी।।
कहाँ स्याम को तुम अरधंगिनि, मैं तुम सरि की नाहीं।
‘सूरज’ प्रभु कौ यह न बूझिऐ, क्यौ न उहाँ लौं जाही।। 3446।।