ऐसे हम देखे नँदनंदन।
स्याम सुभग तनु, पीत बसन जनु, नीलजलद पर तड़ित सुछंदन।।
मंद मंद मुरली-रव-गरजनि, सुधा दृष्टि बरषति आनंदन।
बिबिध-सुमन-वनमाला उर, मनु सुरपति धनुष नये ही छंदन।।
मुक्तावली मनहुँ बगपगति, सुभग अंग चरचित छबि चंदन।
‘सूरदास’ प्रभु नोप-तरोवर-तर, ठाढ़े सुर-नर-मुनि बंदन।।1780।।