ऊधौ हरि यह कहा बिचारी।
सदा समीप रहत बृंदावन, करत बिहार बिहारी।।
अब तौ रंग रँगे कुबिजा के, बिसरि गई ब्रजनारी।
कछु इक मंत्र कियौ उन दासी, तिहिं विनोद अधिकारी।।
दिन दस और रहौ तुम ब्रज मै, देखौ दसा विचारी।
प्रान रहत है आसा लागे, कब आवै गिरिधारी।।
तुम जो कहत जोग है नीकौ, कहौ कौन विधि कीजै।
हम तन ध्यान नदनंदन कौ, निरखि निरखि सो जीजै।।
सुदर स्याम कठ बैजंती, माथै मुकुट बिराजै।
कमलनैन कमराकृत कुडल, देखत ही भव भाजै।।
ताते जोग न मन मै आवै, तू नीके करि राखि।
'सूरदास' स्वामी के आगै, निगम पुकारत साखि।।4007।।