ऐसे हम नहिं जाने स्यामहि।
सेवा करत करी उनि ऐसी, गई जाति कुल नामहिं।।
तन मन प्रीति लाइ जो तोरै, कौन भलाई तामहिं।
वै कह जानै पीर पराई, लुब्ध आपने कामहिं।।
नगर नारि रति के रतिनागर, रते कूबिजा बामहिं।
अतहुँ ‘सूर’ सोइ पै प्रगट, होइ प्रकृति जो जामहिं।। 3187।।