ऐसी कौ सकैं करि बिन मुरारी -सूरदास

सूरसागर

अष्टम स्कन्ध

[[चित्र:Prev.png|left|link= स्रु तिनि हित हरि मच्छ रूप धारयौ2 -सूरदास
राग मारू




ऐसी कौ सकैं करि बिन मुरारी ।
कहत ही ब्रह्म के वेद-उद्धरन हित, गए पाताल तनमत्स्य धारी।
संखासुर भारि कै, वेद उद्धारि कै, आपदा चतुरमुख की निवारी।
सुरनि आकास तैं पुहप-बरषा करी, सूर सुजस कीरति उचारी।।17।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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