एकमात्र उनकी ही हूँ मैं -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग शिवरञ्जनी - ताल कहरवा


एकमात्र उनकी ही हूँ मैं, एकमात्र वे ही मेरे।
रहा न को‌ई, जिसको मैं हेरूँ, वा जो मुझको हेरे॥
टूट गया अग-जग से मेरा सभी तरह का सब सम्बन्ध।
बचा न कुछ भी, जिससे मेरा हो को‌ई ममता का बन्ध॥
मेरे मन की छोटी-मोटी सभी जानते हैं वे बात।
उनसे मेरा, उनका मुझसे सदा बना रहता संघात॥
वे मुझमें रहते नित, मैं हूँ करती नित्य उन्हीं में वास।
वे ही मेरे जीवन-जीवन, वे ही मेरे श्वासोच्छ्‌‌वास॥
कभी न हूँ मैं उनसे न्यारी, वे भी कभी न हैं न्यारे।
नित्य प्रियतमा उनकी मैं, वे केवल नित मेरे प्यारे॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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