महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
81.पुत्र-शोक
ज्यों-ज्यों शिवर निकट आता गया त्यों-त्यों अर्जुन की घबराहट बढ़ती गई। वह बोला- "जनार्दन! क्या कारण है कि सदा की भाँति आज कोई मंगल-ध्वनि सुनाई नहीं दे रही है? बाजे नहीं बज रहे हैं? जो सैनिक सामने दीख पड़ता है, मुझ पर उसकी निगाह पड़ने ही न जाने क्यों, वह अपना सिर झुका लेता है। कभी ऐसा हुआ नहीं। आज यह क्या बात है? और क्यों? माधव, मेरा मन घबराया हुआ है। मैं भ्रांत-सा हो रहा हूं? सब भाई कुशल से तो होंगे? आज अभिमन्यु अपने भाइयों के साथ हंसता हुआ मेरा स्वागत करने क्यों नहीं दौड़ा आ रहा है?" ऐसी ही बातें करते हुए दोनों शिविर के अंदर पहुँचे। युधिष्ठिर आदि जो भाई-बंधु शिविर में थे, वे कुछ बोले नहीं। यह देख अर्जुन बोला- "आप लोगों के चेहरे उतरे हुए क्यों हैं? अभिमन्यु भी दीख नहीं पड़ रहा है। क्या कारण है कि आप कोई भी आज मेरी विजय पर मेरा स्वागत नहीं करते? हंसकर आप लोग बातें नही करते? मैंने सुना है कि आचार्य द्रोण ने चक्रव्यूह की रचना की थी। अभिमन्यु को छोड़कर आपमें कोई भी इस व्यूह को तोड़कर भीतर घुसना नहीं जानता है। अभिमन्यु तो उसे तोड़कर भीतर नहीं चला गया? मैं उसे बाहर निकलने की तरकीब नहीं बता सका था। वहाँ जाकर वह कहीं मारा तो नहीं गया है?" किसी ने कुछ न कहने पर भी अर्जुन ने परिस्थिति देखकर अपने-आप ही सब बातें ताड़ लीं और तब उससे रहा नहीं गया। सब-कुछ जान जाने पर वह बुरी तरह बिलखने लगा। "अरे! क्या सचमुच मेरा प्यारा बेटा यमलोक पहुँच गया? सचमुच क्या वह यमराज का मेहमान बन गया? युधिष्ठिर, भीमसेन, धृष्टद्युम्न महापराक्रमी सात्यकि आदि आप सब लोगों ने क्या सुभद्रा के पुत्र को शत्रु के हाथों सौंप दिया? आप सबके होते हुए उसे बलि चढ़ना पड़ा? अब मैं सुभद्रा को किस तरह जाकर समझाऊंगा? द्रौपदी को कैसे मुंह दिखाऊंगा? उनके पूछने पर क्या कहूंगा? अरे, उत्तरा को अब कौन समझायेगा? कैसे कोई उसे सांत्वना देगा?"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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