महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
30.अगस्त्य मुनि
युधिष्ठिर जब राजा थे तब जिन ब्राह्मणों ने उनके यहाँ आश्रय लिया था, वनवास के समय भी उन्होंने युधिष्ठिर का साथ नहीं छोड़ा। ऐसे कठिन समय में इतने सारे ब्राह्मणों का पालन करना कठिन काम था। लेकिन युधिष्ठिर उसे बड़ी आस्था के साथ निभा रहे थे। अर्जुन के तपस्या करने को जाने के बाद, एक बार लोमश नाम के यशस्वी ऋषि युधिष्ठिर के आश्रम में आये। उन्होंने देखा कि युधिष्ठिर को ऋषि मुनियों की भारी भीड़ घेरे हुए है। उन्होंने युधिष्ठिर को सलाह दी कि वनवास के दिनों में इतने लोगों की भीड़ को साथ रखना उचित नहीं। यह जितनी कम हो, उतना अच्छा। इसलिए अपने साथ के लोगों की संख्या कम कर लीजिए और कुछ समय के लिए तीर्थाटन के लिए चले जाइये। लोमश ऋषि की सलाह मानकर युधिष्ठिर ने अपने साथ के लोगों को बताया- "हम लोग तीर्थाटन को जाने वाले हैं। मार्ग में काफी मुसीबतें आ सकती हैं। इस कारण जो लोग तकलीफ नहीं उठा सकते, जो स्वादिष्ट भोजन पाने की लालसा से साथ रहना चाहते हैं, जो अपने हाथ से भोजन नहीं पकाते और जो मुझे राजा समझकर यहाँ आश्रय लिये हुए है, अच्छा हो कि वे सब राजा धृतराष्ट्र के पास चले जायें। अगर वह आश्रय न दें तो पांचाल नरेश द्रुपद के पास चले जायें।" ब्राह्मणों को इस भाँति समझाकर और लोगों को इधर-उधर भेजकर युधिष्ठिर ने अपने पास का जमघट कम कर लिया और पुण्य क्षेत्रों की यात्रा के लिए निकल पड़े। यात्रा में वह प्रत्येक तीर्थ की पूर्व-कथा भी जहाँ जैसी प्रचलित होती, सुनते। इसी यात्रा के दौरान में पांडवों को अगस्त्य मुनि की कथा भी सुनने में आई। एक बार यात्रा करते हुए महामुनि अगस्त्य ने देखा कि कुछ तपस्वी उल्टे लटके हुए हैं और इस कारण बड़ी तकलीफ पा रहे हैं। उन्होंने पूछा कि आप लोग कौन हैं? यह घोर यातना क्यों सह रहे हैं? तपस्वियों ने उत्तर दिया- "बेटा! हम तुम्हारे पूर्वज-पितृ हैं। तुम अविवाहित ही रह गये, इस कारण तुम्हारे बाद हमे पिंड तर्पण देने वाले कोई नहीं रह जायेगा। इस कारण हमे घोर तपस्या करनी पड़ रही है। यदि तुम विवाह करके पुत्रवान हो जाओ तो हम इस यातना से छुटकारा पा जायेंगे।" यह सुनकर अगस्त्य ने विवाह करने का निश्चय कर लिया। विदर्भ देश के राजा ने अगस्त्य मुनि से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि मुझे संतान होने का वर दीजिए। अगस्त्य ने वर तो दे दिया, किन्तु एक शर्त के साथ। वह बोले- "राजन! तुम्हारे पुत्री होगी। लेकिन उसका विवाह मेरे साथ करना होगा।" वरदान देते समय मुनि ने स्त्रियोचित सौंदर्य के सारे लक्षणों से सुशोभित एक अनुपम सुन्दरी की कल्पना कर ली थी। विदर्भ-नरेश की रानी ने ऐसी ही एक पुत्री को जन्म दिया। उसका लावण्य अलौकिक था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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