महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
35.अष्टावक्र
लोमश के साथ तीर्थाटन करते हुए एक बार पांडव एक ऐसे वन में जा पहुँचे जो उपनिषदों में श्वेतकेतु के आश्रम के नाम से वर्णित है। उस पवित्र वन के बारे में लोमश ऋषि ने युधिष्ठिर को कथा सुनाई- महर्षि उद्दालक वेदान्त का प्रचार करने वाले महात्माओं में श्रेष्ठ माने जाते थे। उनके शिष्यों में से कहोड़ भी एक थे। कहोड़ आचार्य की खूब सेवा-टहल करते थे और बड़े संयमी थे; पर लिखने-पढ़ने में तेज न थे इस कारण उद्दालक के दूसरे शिष्य कहोड़ की हंसी उड़ाते थे। फिर भी उद्दालक ने कहोड़ के शील-स्वभाव और संयम से खुश होकर अपनी कन्या सुजाता उन्हें ब्याह दी। कुहोड़ से सुजाता के एक पुत्र हुआ। कहते हैं कि वह जब गर्भ में था तभी उसको सारे वेद आते थे। किन्तु पिता कहोड़ तो थे अविद्वान। वेद-मन्त्रों का न तो ठीक-ठीक उच्चारण कर सकते थे, न स्वर सहित गा ही सकते थे। इस कारण उनका गलत सलत वेद-पाठ गर्भ के शिशु के लिए असह्य हो उठा और वह वहाँ टेढ़ा-मेढ़ा हो गया। टेढ़े-मेढ़े शरीर के कारण बच्चे का नाम 'अष्टावक्र' पड़ गया। अष्टावक्र ने बालकपन में ही बड़ी विद्वत्ता का परिचय दिया। जब वह बारह साल के थे तभी वेद-वेदांगों का अध्ययन पूर्ण कर चुके थे। एक बार बालक अष्टावक्र ने सुना कि मिथिला में राजा जनक एक भारी यज्ञ कर रहे हैं, जिसमें बड़े-बड़े पण्डितों का शास्त्रार्थ होने वाला है। यह सुन अष्टावक्र तुरन्त अपने भानजे श्वेतकेतु को भी साथ लेकर यज्ञ के लिए चल पड़े। मिथिला नगरी में पहुँचकर वह यज्ञशाला की ओर जा ही रहे थे कि सड़क पर राजा जनक परिवार के साथ जाते हुए दिखाई दिये। राज सेवक आगे-आगे कहते जा रहे थे- "राजाधिराज जनक आ रहे हैं। हट जाओ, रास्ता दो, रास्ता दो।" अष्टावक्र को जब नौकरों ने रास्ते से हटने के लिए कहा तो उन्होंने जवाब दिया- "शास्त्रों में कहा गया है कि अन्धे, अपाहिज, औरतें और बोझा उठाने वाले जब आ रहे हों तो स्वयं राजा को उनके लिए रास्ता देना चाहिए, और अगर वेद पढ़े हुए ब्राह्मण जा रहे हों तो राजा उनको रास्ते से हटने के लिए नहीं कह सकता। समझे!" बालक की गंभीर बातें सुनकर राजर्षि जनक दंग रह गये। वह बोले- "ब्राह्मण पुत्र ठीक कहते हैं। आग के आगे छोटे-बड़े का अन्तर नहीं होता। आग की जरा-सी चिनगारी भी सारे जंगल को जला सकती है। इसलिए हट जाओ, ब्राह्मण-पुत्र को रास्ता दो।" कहकर राजा जनक ने अपने परिवार सहित हटकर अष्टावक्र को रास्ता दे दिया। अष्टावक्र और श्वेतकेतु यज्ञशाला में प्रवेश करने लगे। "यहाँ बालकों का क्या काम? वेद पढ़े हुए लोग ही इस यज्ञशाला में जा सकते हैं।" द्वारपाल ने यह कहकर लड़कों को रोका। अष्टावक्र ने उत्तर दिया- "हम बालक नहीं हैं। दीक्षा लेकर वेद सीख चुके हैं। जो वेदान्त का ज्ञान प्राप्त कर चुके हों उनकी आयु या बाहरी शक्ल सूरत देखकर कोई उन्हें बालक नहीं ठहरा सकता।" और यह कहकर अष्टावक्र यज्ञशाला के अंदर घुसने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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