महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
4.कच और देवयानी
एक बार देवताओं और असुरों के बीच इस बात पर लड़ाई छिड़ गई कि तीनों लोकों पर किसका आधिपत्य हो। बृहस्पति देवताओं के गुरु थे और शुक्राचार्य असुरों के। वेद-मन्त्रों पर बृहस्पति का पूर्ण अधिकार था और शुक्राचार्य का ज्ञान सागर-जैसा अथाह था। इन्हीं दो ब्राह्मणों के बुद्धि बल पर देवासुर संग्राम होता रहा। शुक्राचार्य को मृत-संजीवन विद्या का ज्ञान था। इससे युद्ध में जितने भी असुर मारे जाते, उनको वह फिर जिला देते थे। इस तरह युद्ध में जितने असुर खेत रहते थे, वे शुक्राचार्य की संजीवनी विद्या से जी उठते और फिर मोर्चे पर आ डटते। देवताओं के पास यह विद्या नहीं थी। देवगुरु बृहस्पति संजीवनी विद्या नहीं जानते थे। इस कारण देवता सोच में पड़ गये। उन्होंने आपस में इकट्ठे होकर मंत्रणा की और एक युक्ति खोज निकाली। वे सब देवगुरु के पुत्र कच के पास गये और उनसे बोले- "गुरुपुत्र! तुम हमारा काम बना दो तो बड़ा उपकार हो। तुम अभी जवान हो और तुम्हारा सौन्दर्य मन को लुभाने वाला है। तुम यह काम बड़ी आसानी से कर सकोगे। करना यह है कि तुम शुक्राचार्य के पास ब्रह्मचारी बनकर जाओ और उनकी खूब सेवा-टहल करके उनके विश्वासपात्र बन जाओ; उनकी सुन्दरी कन्या का प्रेम प्राप्त करो और फिर शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या सीख लो।" कच ने देवताओं की प्रार्थना मान ली। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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