महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
87.कुंती का दिया वचन
संजय से जब धृतराष्ट्र ने सुना कि दुर्मुख और दुर्जय मारे गये तो उनसे न रहा गया। वह बोले- "दुर्योधन ने यह कैसा अनर्थ किया कि दुर्मुख और दुर्जय को युद्ध की आग में झोंककर मरवा डाला। यही मूर्ख दुर्योधन कहा करता था कि ʻसारे संसार में मैंने एक भी ऐसा वीर नहीं देखा तो वीरता में कर्ण की बराबरी कर सके। वह कर्ण जब मेरा साथी है तो देवता भी मुझे परास्त नहीं कर सकते। फिर इन पांडवों की बात ही क्या है?' इस तरह इस मूर्ख दुर्योधन ने आशा में अपना महल खड़ा किया। पर भीमसेन के आगे कर्ण टिक न सका और युद्ध से भाग खड़ा हुआ। उससे कुछ करते न बना। वह करता भी क्या? वायुपुत्र तो वीरता और बल में यमराज के समान ही है। ऐसे महाबली से दुष्ट दुर्योधन ने वैर मोल लिया है। अब बचने की कोई आशा ही नहीं रही।" धृतराष्ट्र का यह विलाप सुनकर संजय झल्ला उठा। बोला- "राजन, दुर्योधन तो नासमझ था ही। लेकिन पांडवों से वैर मोल लेने में तो आप भी शामिल थे। नासमझ बेटे की बातें मानकर आपने ही तो इस सारे अनर्थ का बीज बोया। आप ही तो इसकी जड़ हैं। भीष्म जैसे महात्माओं की बात आपने ठुकरा दी। अब उसी का परिणाम भोग रहे हैं। किया जब आपने और निंदा अपने बेटे की कर रहे हैं। वह तो अपने प्राण हथेली पर लेकर लड़ ही रहा है। अब पछताने से क्या होता है?" यह कह संजय आगे का हाल सुनाने लगा। भीमसेन के हाथों कर्ण को हारते देखकर दुर्मद, दु:सह, दुर्द्धर्ष आदि धृतराष्ट्र के पांच बेटे भीमसेन पर टूट पड़े। उनके आने से कर्ण का भी साहस बंध गया। उसने भीमसेन पर कई तीखे बाण चलाए। पहले तो भीमसेन ने धृतराष्ट्र के पुत्रों की ओर ध्यान न दिया और कर्ण के ही पीछे लगा रहा; पर उन पांचों ने कर्ण को चारों तरफ से घेरकर अपने बचाव में ले लिया और भीमसेन पर बाणों की मार करते रहे। इस पर भीमसेन को गुस्सा चढ़ आया। उसने धृतराष्ट्र के उन पांचों पुत्रों को यमपुर पहुँचा दिया। पांचों जवान राजकुमार, अपने सारथियों और घोड़ों के साथ युद्ध मे मैदान में मृत होकर ऐसे गिर पड़े जैसे आंधी आने पर जंगल में रंग-बिरंगे फूलों वाले सुंदर पेड़ उखड़कर गिर पड़ते हैं। दुर्योधन के और पांचों भाइयों को इस तरह मारा गया देखकर कर्ण बड़े जोश में आ गया और बड़ी उग्रता के साथ लड़ने लगा। भीमसेन भी कर्ण से हुए अपने पुराने कष्टों को याद करके बहुत उत्तेजित हो उठा और कर्ण पर पैने बाणों की बौछार करने लगा। कर्ण का धनुष कट गया। घोड़े और सारथी मारे गये। कर्ण रथविहीन हो गया। तब वह रथ से कूद पड़ा और भीमसेन पर गदा-प्रहार किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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