महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
88.भूरिश्रवा का वध
"अर्जुन! देखो, वह तुम्हारा शिष्य और मित्र सात्यकि शत्रुओं की सेना तितर-बितर करता हुआ आ रहा है।" रथ चलाते-चलाते श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा। "माधव! युधिष्ठिर को छोड़कर सात्यकि का यहाँ चला आना मुझे ठीक नहीं जंचता। द्रोण तो उधर मौके की ताक में ही हैं। युधिष्ठिर की रक्षा का भार हमने सात्यकि को सौंपा था। उनकी रक्षा करने के बजाय उसे इस तरह यहाँ नहीं चले आना चाहिए था। अभी तक जयद्रथ का भी वध नहीं हो पाया है और उधर देखिये, भूरिश्रवा सात्यकि से भिड़ गया है। ऐसे समय धर्मराज ने सात्यकि को यहाँ भेजकर भारी भूल की। "अर्जुन ने चिंतित भाव से कहा। श्रीकृष्ण को जन्म देने के लिये देवकी का अवतार हुआ था। देवकी के स्वयंवर के अवसर पर सोमदत्त और शिनि इन दो राजाओं में भारी युद्ध हुआ। वासुदेव की तरफ से शिनि ने सोमदत्त से लड़कर उसको परास्त कर दिया और देवकी को अपने रथ पर बिठाकर ले गये। उस दिन से लेकर शिनि और सोमदत्त में खानदानी बैर हो गया। यहाँ तक कि दोनों खानदान वाले सदा एक-दूसरे के प्राणों के प्यासे रहते थे। सात्यकि शिनि का पोता था और भूरिश्रवा सोमदत्त का पुत्र था। इस कारण सात्यकि को देखते ही भूरिश्रवा ने उसे युद्ध के लिए ललकारा और बोला- "शूरता के दर्प में भूले हुए सात्यकि, देखो! अभी तुम्हारी खबर लेता हूँ। चिरकाल से तुमसे युद्ध करने की चाह मेरे मन में समाई हुई थी। आज तुम मेरे सामने पड़े हो। अब मेरी इच्छा पूरी होगी। राजा दशरथ के पुत्र लक्ष्मण के हाथों इन्द्रजीत का जैसे बध हुआ, वैसे ही आज मेरे हाथों तुम्हारा वध होने वाला है। मृत्यु तुम्हारी बाट जोह रही है। जिन वीरों को तुमने मारा था उनकी विधवाएं आज प्रसन्न होंगी। चलो तो फिर लड़ ही लें।" यह सुन सात्यकि हंसा और बोला- "निरर्थक बातें बनाने से क्या फायदा? जिसे लड़ने से डर हो, उसे इस तरह का हौआ दिखाया जा सकता है। तुम व्यर्थ की बातें बनाना छोड़ो। युद्ध करके ही अपनी शूरता का परिचय दो। शरत्-काल के मेघों की भाँति केवल गरजना शूरों को विचलित नहीं करता।" इस कहा-सुनी के बाद युद्ध शुरू हो गया और दोनों वीर एक-दूसरे पर शेरों की भाँति टूट पड़े। लड़ते-लड़ते सात्यकि और भूरिश्रवा के घोड़े मर गये, धनुष कट गये और रथ बेकार हो गये। इसके बाद दोनों वीर जमीन पर खड़े ढाल-तलवार लेकर एक-दूसरे पर भयानक वार करने लगे। दोनों ने अद्भुत पराक्रम का परिचय दिया। वे दोनों एक-दूसरे से बढ़कर थे। इसलिये एक मुहूर्त तक दोनों में खड्ग युद्ध होता रहा। बाद में दोनों की ढालें कट गई। इस पर दोनों ने ढाल-तलवार फेंक दी और कुश्ती लड़ने लगे। दोनों वीर एक-दूसरे से छाती भिड़ाते और गिर पड़ते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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