महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
6.ययाति
राजा ययाति पाण्डवों के पूर्वजों में थे। वह कुशल योद्धा थे। कभी लड़ाई के मैदान में उनकी हार नहीं हुई। वह बड़े ही शीलवान थे। पितरों और देवताओं की पूजा बड़ी श्रद्धा के साथ करते और सदा प्रजा की भलाई में लगे रहते। इससे उनका यश दूर-दूर तक फैला हुआ था। ऐसे कर्तव्यशील राजा जवानी बीतने से पहले ही शापवश रंग-रूप बिगाड़ने और दुःख देने वाले बुढ़ापे को प्राप्त हो गये। जो बुढ़ापे को पहुँच चुके हैं, वे ही अनुभव कर सकते हैं कि बुढ़ापा कैसी बुरी बला है। तिस पर ययाति की तो अभी जवानी की दुपहरी भी न हो पाई थी। उनकी ग्लानि का क्या पूछना? ययाति की भोग-लालसा भी अभी छूटी न थी। उनके पाँचों पुत्र अभी सुन्दर और जवान थे। वे अस्त्र-विद्या में निपुण थे और गुणवान भी थे। ययाति ने अपने पाँचों बेटों से एक-एक करके प्रार्थना की कि अपनी जवानी थोड़े दिन के लिए उनको दे दें। उन्होंने कहा- "प्यारे पुत्रों, तुम्हारे नाना शुक्राचार्य के शाप से मुझे अचानक ही बुढ़ापे ने दबा लिया है। अभी तक मैंने भोग-विलास की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया था। नियमपूर्वक कर्तव्य करने में ही मैंने अपना समय बिता दिया। मुझ पर दया करो और अपनी जवानी कुछ समय के लिए मुझे दे दो। जो मेरा बुढ़ापा ले लेगा और मुझे अपनी जवानी दे देगा, वही मेरे राज्य का अधिकारी होगा। मैं उसकी जवानी लेकर कुछ दिन भोग-लालसा पूरी कर लेना चाहता हूँ।" राजा की इस प्रार्थना के उत्तर में बड़े बेटे ने कहा- "पिता जी, आप यह क्या माँग रहे हैं? अगर मैं आपको अपनी जवानी देकर आपका बुढ़ापा खुद ले लूँ तो नौकर-चाकर और युवतियाँ मेरी हँसी नहीं उड़ायेंगी? यह मुझसे नहीं हो सकता। मुझसे ज्यादा आपको मेरे और भाइयों पर प्यार है, उन्हीं से क्यों नहीं माँगते?" दूसरे बेटे ने कहा- "बुढ़ापा आदमी को कमज़ोर बना देता है, रंग रूप बिगाड़ देता है। बूढ़े की बुद्धि भी स्थिर नहीं रहती। आप मुझे कहते हैं कि ऐसा बुढ़ापा ले लो! क्षमा कीजियेगा, पिता जी, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है।" तीसरे बेटे ने भी इसी तरह इन्कार कर दिया। उसने कहा- "बूढ़ा न हाथी पर चढ़ सकता है, न घोड़े पर ही सवार हो सकता है। उसकी जबान लड़खड़ाती है। ऐसा बुढ़ापा लेकर मैं क्या करूँ? इससे तो मौत ही अच्छी। नहीं पिता जी, मैं आपकी यह बात नहीं मान सकता।" जब इस तरह तीनों बेटों ने इन्कार कर दिया तो राजा निराश से हो गये। उन्हें बड़ा क्रोध आया। फिर भी उन्होंने चौथे बेटे से बहुत अनुनयपूर्वक कहा- "प्यारे पुत्र, मैं असमय ही बूढ़ा हो गया हूँ। तुम थोड़े दिन के लिए मेरा बुढ़ापा अपने ऊपर ले लो और अपनी जवानी मुझे दे दो। कुछ दिन सुख भोगने के बाद मैं अपना बुढ़ापा वापस ले लूँगा और तुम्हारी जवानी लौटा दूंगा। इतनी दया तो मुझ पर करो।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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