महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
68.पांचवां दिन
सुबह होने पर दोनों सेनाएं फिर युद्ध के लिये सज्जित हो गईं। भीष्म ने आज और भी अधिक अच्छी तरह अपनी सेना की व्यूह-रचना की। उधर पांडव-सेना की भी व्यूह-रचना युधिष्ठिर ने बड़ी सतर्कता से की। सदा की भाँति भीमसेन सेना के आगे खड़ा हो गया। शिखंडी, धृष्टद्युम्न और सात्यकि उनके पीछे सेना की रक्षा करते हुए खड़े रहे और सब पांडव वीर श्रेणीबद्ध होकर उनके पीछे। सबसे पिछली कतार में युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव खड़े थे। शंख-ध्वनि के साथ लड़ाई शुरू हो गई। भीष्म ने धनुष तानकर बाणों की झड़ी लगा दी और शीघ्र ही पांडव-सेना की नाक में दम कर दिया। सेना में हाहाकार मच गया। यह देख धनंजय ने भीष्म पर कई बाणों से हमला किया। आज भी अपनी सेना को भयभीत होते देखकर दुर्योधन ने आचार्य द्रोण को बुरा-भला कहा। द्रोण इससे क्रोध में आ गये और बोले– "तुम पांडवों के पराक्रम से परिचित हो तो नहीं और व्यर्थ में यह बकझक किया करते हो। मैं अपनी ओर से युद्ध करने में कोई कसर नहीं रखता, इतना तुम निश्चित जानो।" और यह कहकर द्रोणाचार्य पांडवों की सेना पर टूट पड़े। यह देख सात्यकि ने उसका पूरी ताकत से जवाब दिया। दोनों में भयानक युद्ध छिड़ गया। परंतु आचार्य द्रोण के आगे भला सात्यकि कब तक टिकता? सात्यकि की बुरी गत होते देखकर भीमसेन उसकी सहायता को दौड़ा और आचार्य पर बाणों की बौछार करने लगा। इस पर युद्ध और भी जोर पकड़ गया। द्रोण, भीष्म और शल्य तीनों कौरव-वीर भीमसेन के मुकाबले में आ डटे। यह देखकर शिखंडी ने भीष्म और द्रोण दोनों पर तीखे बाणों की झड़ी लगा दी। शिखंडी के मैदान में आते ही भीष्म रंग-भूमि छोड़कर चले गये। भीष्म का कहना था कि शिखंडी चूंकि जन्म से पुरुष नहीं, स्त्री है, इसलिये उसके साथ लड़ना क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध है। जब भीष्म मैदान छोड़कर हट गये तो द्रोणाचार्य ने शिखंडी पर हमला कर दिया। महारथी होते हुए भी द्रोण के आगे शिखंडी ज्यादा देर न टिक सका। विवश होकर द्रोण के आगे से उसे हट जाना पड़ा। दोपहर तक भीषण संकुल-युद्ध होता रहा। दोनों तरफ के सैनिक आपस में गुत्थम-गुत्था होकर लड़ने लगे। दोनों तरफ के असंख्य वीर इस युद्ध में बलि चढ़ गये। तीसरे पहर दुर्योधन ने सात्यकि के विरुद्ध एक भारी सेना भेज दी। सात्यकि ने उस सेना का सर्वनाश कर दिया और भूरिश्रवा को खोजते हुए जाकर उनसे भिड़ गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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