महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
90.आचार्य द्रोण का अंत
महाभारत-कथा के पाठक जानते हैं कि घटोत्कच भीमसेन का हिडिंबा राक्षसी से उत्पन्न पुत्र था। महाभारत के कथा पात्रों में दो ही बालक ऐसे हैं जो वीरता, धीरता, साहस, शक्ति, बल, शील, यश आदि सभी गुणों से युक्त और उज्ज्वल चरित्र के थे और वे थे- अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु और भीमसेन का पुत्र घटोत्कच। दोनों ने ही पांडवों के पक्ष में अद्भुत वीरता के साथ युद्ध करके प्राणों का उत्सर्ग किया था। महाभारत का आख्यान एक अद्भुत रचना है जिसमें मानव-जीवन के दु:ख-दर्द का सार आ गया है। करुण रस से पूर्ण यह धार्मिक ग्रंथ जीवन के दु:खों पर प्रकाश डालकर पाठकों को अजर-अमर सत्य रूप परमात्मा की ओर बढ़ने को प्रेरित करता है। साधारण कहानियों व उपन्यासों का ढंग कुछ और ही होता है। वे या तो दुखांत होते हैं या सुखांत। कथाओं का नायक रोमांचकारी घटनाओं और मुसीबतों को पार करता हुआ, अंत में अपने उद्देश्य में सफल हो जाता है और अपनी मनचाही प्रेमिका से विवाह कर लेता है। पाठक का आकुलित मन इससे प्रसन्न हो उठता है। दुखांत-कथाओं का ढंग ठीक इससे उल्टा होता है, जिसमें प्रारंभ में तो घटनायें शुभ से शुभतर होती जाती हैं, परंतु अंत में भारी दुर्घटना के साथ यवनिका पतन हो जाता है। परंतु रामायण और महाभारत जैसी धार्मिक व प्राचीन रचनाओं की प्रणाली कुछ इस प्रकार की है कि जिससे पाठक का मन द्रवित हो जाता है। कभी वह आनंद की तरंगों में बहता है तो कभी दु:ख की आंधी उसे झंझोड़ देती है। मन की भावनायें पल-पल बदलती जाती हैं और परिणाम में पाठक परमात्मा की शरण लेकर सुख-दु:ख से ब्राह्मी-स्थिति को पहुँचने के लिये प्रेरित होता है। दोनों तरफ ईर्ष्या-द्वेष एवं प्रतिहिंसा की जो आग भड़क रही थी, वह इतनी प्रबल हो उठी कि केवल दिन के समय लड़ने से ही उसको संतुष्ट नहीं किया जा सका। चौदहवें दिन, सूर्य के डूबने के बाद भी युद्ध जारी रखने के लिये मशाल जलाये गये। रात का समय था। घटोत्कच और उसके साथियों ने भयानक माया-युद्ध शुरू कर दिया। रात के समय की उस लड़ाई का दृश्य अद्भुत था। वह एक ऐसी घटना दोनों ओर के वीर अपनी-अपनी सेना को युद्ध के लिये उत्साहित कर रहे थे। कर्ण और घटोत्कच में उस रात बड़ा भयानक युद्ध हुआ। घटोत्कच और उसकी पैशाची सेना ने बाणों की वह बौछार की कि जिससे दुर्योधन की सेना के झुण्ड-के-झुण्ड वीर मारे जाने लगे। प्रलय-सा मच गया। यह देखकर दुर्योधन का दिल कांपने लगा। कौरव-वीरों ने कर्ण से अनुरोध किया कि किसी-न-किसी तरह आज घटोत्कच का काम तमाम करना चाहिये। उन्होंने कहा- "कर्ण! आप इसी घड़ी इस राक्षस का वध कर दो! वरना हमारी सेना तबाह हो जायेगी। इसको शीघ्र ही मृत्युलोक पहुँचाओ।" घटोत्कच ने कर्ण को भी इतनी पीड़ा पहुँचाई थी कि वह भी क्रोध में भरा हुआ था। कौरवों का अनुरोध सुनकर उसकी उत्तेजना और भी प्रबल हो उठी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज