महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
20.जरासंध-वध
मगध देश का राजा बृहद्रथ अपनी शूरवीरता के लिये बड़ा विख्यात था। उसके अधीन तीन अक्षौहिणी सेना थी। उचित समय पर यशस्वी राजा बृहद्रथ ने काशिराज की जुड़वाँ बेटियों से ब्याह किया। राजा बृहद्रथ ने अपनी पत्नियों को वचन दिया था कि वह दोनों में से किसी के साथ कोई पक्षपात नहीं करेगा। विवाह के बहुत दिन बीत जाने पर भी राजा बृहद्रथ के कोई संतान नहीं हुई। वृद्धावस्था आ जाने और संतान की ओर से निराश हो जाने पर राजा बृहद्रथ अपने मंत्रियों के हाथ में राज्य का कार्यभार सौंपकर अपनी दोनों पत्नियों को लेकर वन में तपस्या करने चले गये। एक दिन वन में महर्षि गौतम के वंशज चण्डकौशिक मुनि से उनकी भेंट हुई। राजा बृहद्रथ ने मुनिवर का विधिवत आदर सत्कार किया और उनको अपनी व्यथा सुनाई। मुनि चण्डकौशिक को राजा के हाल पर दया आई। उन्होंने राजा से पूछा, "आप मुझसे क्या चाहते हैं?" बृहद्रथ ने करुण स्वर में कहा- "मुनिवर! मैं बड़ा ही अभागा हूँ। पुत्र-भाग से वंचित हूँ। राज्य छोड़कर वन में तपस्या करने आया हूँ। इस हालत में मैं आपसे और क्या माँग सकता हूँ?" राजा की बातों से चण्डकौशिक का मन पिघल गया। वह उसी क्षण एक आम के पेड़ के नीचे आसन जमाकर बैठ गये और ध्यान में लीन हो गये। इतने में एक पका हुआ आम उनकी गोद में गिरा। महर्षि ने उसे लेकर लेकर राजा को देते हुए कहा, "राजन! यह लो, इससे तुम्हारा दुःख दूर हो जायेगा।" राजा ने उस फल के दो टुकड़े किये और दोनों पत्नियों को एक-एक टुकड़ा खिला दिया। फल खाने के बाद दोनों पत्नियों को गर्भ रह गया। राजा बृहद्रथ बड़े प्रमुदित हुए। राजा महर्षियाँ तो आनन्द के मारे फूली न समाई। पर जब बच्चे पैदा हुए तो रानियों पर वज्र गिरा, क्योंकि वे बच्चे पूरे नहीं थे, बल्कि आधे थे; एक-एक बच्चे के केवल एक हाथ, एक पैर, एक आँख, एक कान तथा मुँह का आधा हिस्सा ही था। उनको देखने पर मन में एक साथ भय और घृणा होती थी; परन्तु दोनों टुकड़ों में जान थी और वे हरकत भी करते थे। मांस के इन मनहूस पिण्डों को देखकर रानियाँ बड़ी ही व्याकुल हो उठीं और दाइयों को आज्ञा दी कि इन टुकड़ों को लपेटकर कहीं दूर फेंक आयें। आज्ञा पाकर दाइयाँ उन टुकड़ों को उठाकर कूड़े-करकट में फेंक आईं। इतने में नर-माँस खाने वाली एक राक्षसी मांस की तलाश में भटकती हुई उस जगह पहुँची जहाँ बच्चों के वे टुकड़े थे। टुकड़े देखे तो राक्षसी ने उनको खाने के लिये एक साथ हाथ में उठाया। उसका उठाना था कि दोनों टुकड़े आपस में जुड़ गये और एक सुन्दर बच्चा बन गया। राक्षसी ने जब यह चमत्कार देखा तो सोचा कि इस बच्चे को मारना ठीक न होगा। यह सोचकर वह एक सुन्दर युवती के रूप में राजा बृहद्रथ के पास गई और बच्चा उन्हें दे दिया। कहा- "यह आप ही का बच्चा है।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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