महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
62.गीता की उत्पत्ति
कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों तरफ की सेनाएं लड़ने को तैयार खड़ी थीं। उन दिनों की रीति के अनुसार दोनों पक्ष के वीरों ने युद्ध-नीति पर चलने की प्रतिज्ञाएं लीं। युद्ध की प्रणाली एवं पद्धति समय-समय पर बदलती रहती थी। उन दिनों की युद्ध-प्रणाली को ध्यान में रखते हुए हमें यह कथा पढ़नी चाहिए तभी हर घटना का सही चित्र हमारे सामने आयेगा। नहीं तो घटनाओं में कहीं-कहीं अस्वाभाविकता का भ्रम हो सकता है। महाभारत के युद्ध की शर्तें ये थीं- रोज सूर्यास्त के बाद लड़ाई बंद हो जाये। युद्ध बंद होने के बाद दोनों पक्ष के लोग आपस में मिलें। समान बलवानों में ही टक्कर हों। अनुचित या अन्यायपूर्ण ढंग से कोई लड़ाई नहीं लड़ सकता। सेना से दूर हट जाने वालों पर बाणों या हथियारों का प्रहार न हो। रथी रथी से, हाथीसवार हाथीसवार से, घुड़सवार घुड़सवार से और पैदल पैदल से ही लड़े। शत्रु पर विश्वास करके जो लड़ना बंद कर दे उस पर, या डरकर हार मानने या सिर झुकाने वाले पर शस्त्र का प्रयोग नहीं होना चाहिए। दो योद्धा आपस में युद्ध कर रहे हों तो उनको सूचना दिये बिना या सावधान किये बिना, तीसरे को उन पर या किसी एक पर शस्त्र नहीं चलाना चाहिए। निहत्थे, असावधान, पीठ दिखाकर भागने वाले या कवच से रहित को हथियार चलाकर नहीं मारना चाहिए। हथियार पहुँचाने और ढोने वालों, अनुचरों, भेरी बजाने वालों और शंख फूंकने वालों पर भी हथियार नहीं चलाना चाहिए। लड़ाई के इन नियमों को दोनों विरोधी पक्षों ने प्रतिज्ञापूर्वक मान लिया। ज्यों-ज्यों समय बदलता जाता है, संसार की रीति-नीति भी बदलती जाती है। न्याय एवं अन्याय की विवेचना भी एक जैसी स्थिर नहीं रहती; न ही न्याय-अन्याय को निर्धारित करने वाले नियम ही कायम रहते हैं। आजकल की लड़ाइयों में जो नीति बरती जाती है, उसके अनुसार, जो भी सामान या जानवर लड़ाई में काम दे सके, उन सबको नष्ट किया जा सकता है। चाहे वे घोड़े-जैसे बेजबान जानवर हों, या दवाइयों जैसी आवश्यक वस्तुएं हों। किंतु उन दिनों की रीति कुछ और ही थी। कहने का मतलब यह नहीं कि उन दिनों के प्रचलित विधि-निषेधों का कभी उल्लंघन होता ही नहीं था। उलटे, महाभारत के कई प्रसंगों से साफ पता चलता है कि उन दिनों भी विभिन्न कारणों से शर्तें कभी-कभी तोड़ी जाती थीं। कभी-कभी ऐसा हुआ करता है कि कुछ खास अवसरों पर, विशेष कारणों से, प्रचलित नियमों का उल्लंघन करना पड़ता है। कभी-कभी यहाँ तक नौबत आ जाती है कि पुराने विधि-निषेधों के स्थान पर नये ही नियम बनाने पड़ जाते हैं। महाभारत के युद्ध में भी कभी-कभी ये नियम तोड़े अवश्य गये हैं; किन्तु आम तौर पर सबने उपरोक्त शर्तें मान ली थीं और उन्हीं के अनुसार वे लड़े भी थे। कभी किसी के शर्त तोड़ने की खबर पड़ी तो उसकी सबने निंदा ही की; तोड़ने वाला भी लज्जित हुआ और अंत में पछताया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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