महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
47.प्रतिज्ञा पूर्ति
पितामह के इस प्रकार समझाने पर कर्ण, अश्वत्थामा आदि वीर जो उत्तेजित हो रहे थे, शांत हो गये। सबको शांत देखकर भीष्म दुर्योधन से फिर बोले- "बेटा दुर्योधन, अर्जुन प्रकट हो गया, वह ठीक है। पर प्रतिज्ञा का समय कल ही पूरा हो चुका। चन्द्र और सूर्य की गति, वर्ष, महीने और पक्ष विभाग के पारस्परिक संबंध को अच्छी तरह जानने वाले ज्योतिषी मेरे कथन की पुष्टि करेंगे। तुम लोगों के हिसाब में कुछ भूल हुई है। प्रत्येक वर्ष के एक जैसे महीने नहीं होते। मालूम होता है कि तुम लोगों की गणना में भूले है। इसलिये तुम्हें भ्रम हुआ है। ज्यों ही अर्जुन ने गांडीव धनुष की टंकार की, मैं समझ गया कि प्रतिज्ञा की अवधि पूरी हो गई। दुर्योधन! युद्ध शुरु करने से पहले इस बात का निश्चय कर लेना होगा कि पांडवों के साथ संधि कर लें या नहीं। यदि संधि करने की इच्छा है तो उसके लिये अभी समय है। बेटा खूब सोच-विचाकर बताओ कि तुम न्यायोचित संधि चाहते हो या युद्ध?” दुर्योधन ने कहा- "पूज्य पितामह! मैं संधि नहीं चाहता। राज्य तो रहा दूर, मैं तो एक गांव तक पांडवों को देने के लिए तैयार नहीं हूँ। इसलिए लड़ने की तैयारियां की जायें।" यह सुन द्रोणाचार्य ने कहा- "सेना के चौथे हिस्से को अपनी रक्षा के लिए साथ लेकर राजा दुर्योधन हस्तिनापुर की ओर वेग से कूच कर दें। एक हिस्सा गायों को घेरकर भगा ले जाये। बाकी जो सेना रह जायेगी उसे साथ लेकर हम पांचों महारथी अर्जुन का मुकाबला करें। ऐसा करने से ही राजा की रक्षा हो सकती है।" आचार्य की आज्ञानुसार कौरव वीरों ने व्यूह रचना की। उधर अर्जुन उत्तर से कह रहा था- "उत्तर! सामने ही शत्रु सेना में दुर्योधन का रथ नहीं दिखाई दे रहा है। कवच पहने जो खड़ा हैं वह पितामह भीष्म हैं, लेकिन दुर्योधन कहाँ चला गया? इन महारथियों की ओर से हटकर अपना रथ ले चलो जिधर दुर्योधन हो। मुझे भय है कि दुर्योधन कहीं गायें लेकर आगे हस्तिनापुर की ओर न जा रहा हो।" उत्तर ने रथ उसी ओर हांक दिया जिधर से दुर्योधन वापस जा रहा था। जाते-जाते अर्जुन ने गांडीव पर चढ़ाकर दो-दो बाण आचार्य द्रोण और पितामह भीष्म की ओर इस तरह मारे जो उनके चरणों में जाकर गिरे। इस प्रकार अपने बड़ों की वंदना करके अर्जुन ने दुर्योधन का पीछा किया। पहले तो अर्जन ने गायें भगा ले जाती हुई कौरव सेना की टुकड़ी को, पास आकर जरा सी देर में तितर-बितर कर दिया और गायें छुड़ा लीं। ग्वालों को गायें विराटनगर की ओर लौटा ले जाने की आज्ञा देकर अर्जुन दुर्योधन का पीछा करने लगा। अर्जुन को दुर्योधन का पीछा करते देखकर भीष्म आदि सेना लेकर अर्जुन का पीछा करने लगे तो शीघ्र ही उसे घेरकर बाणों की बौछार करने लगे। अर्जुन ने उस समय अद्भुत रण-कौशल का परिचय दिया। पहले तो उसने कर्ण पर हमला करके उसे बुरी तरह घायल करके मैदान से भगा दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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