महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
47.प्रतिज्ञा पूर्ति
इसके बाद द्रोणाचार्य की बुरी गत होत देख अश्वत्थामा आगे बढ़ा और अर्जुन पर बाण बरसाने लगा। अर्जन ने जरा हटकर द्रोणाचार्य को खिसक जाने का मौका दे दिया। मौका पाकर आचार्य जल्दी से खिसक गये। उनके चले जाने के बाद अर्जुन अब अश्वत्थामा पर टूट पड़ा। दोनों में भयानक युद्ध होता रहा। अंत में अश्वत्थामा को हार माननी पड़ी। उसके बाद कृपाचार्य की बारी आई और वह भी हार खा गये। पांचों महारथी जब इस भाँति परास्त हो गये तो फिर सेना किसके बल पर टिकती। सारी कौरव सेना को अर्जुन ने जल्दी से तितर-बितर कर दिया। सैनिक अपनी जान लेकर भाग खड़े हुए। मानो भीष्म से यह न देखा गया। डरकर भागती हुई सेना को फिर से इकट्ठी कर वह द्रोणाचार्य आदि के साथ अर्जुन पर टूट पड़े। भीष्म और अर्जुन में ऐसा भीषण संग्राम हुआ कि देवता भी उसे देखने के लिए आकाश में इकट्ठे हो गये। चारों ओर से कौरव महारथी अर्जुन पर वार करने लगे। अर्जुन ने भी उस समय चारों ओर बाणों की ऐसी वर्षा की जिससे वह बर्फ से ढके पर्वत के समान प्रतीत होने लगा। इस भाँति भीषण युद्ध करते हुए भी अर्जुन ने दुर्योधन का पीछा करना न छोड़ा। पांचों महारथियों के अर्जुन को एक साथ रोकने का प्रयत्न करने पर भी रोका न जा सका और आखिर दुर्योधन के निकट पहुच ही गया। उसने दुर्योधन पर भीषण हमला कर दिया। दुर्योधन घायल होकर मैदान छोड़ भाग खड़ा हुआ। अर्जुन गरजकर बोला- "दुर्योधन! तुम्हें अपनी वीरता और यश का घमण्ड था, अब जब वीरता दिखाने का समय आया तो भागते क्यों हो?" यह सुनकर दुर्योधन सांप की तरह फुफाकारता हुआ फिर आ डटा। भीष्म, द्रोण आदि कौरव वीरों ने दुर्योधन को चारों तरफ से घेर लिया और अर्जुन की बाण-वर्षा से उसकी रक्षा करने लगे। इस प्रकार बहुत देर तक घोर संग्राम होता रहा और हार-जीत का निर्णय करना कठिन हो गया। तब अर्जुन ने 'मोहनास्त्र' का प्रयोग किया। इससे सारे कौरव वीर पृथ्वी पर बेहोश होकर गिर पड़े। अर्जुन ने उन सबके वस्त्र उतार लिये। उन दिनों की प्रथा के अनुसार शत्रु पक्ष के सैनिकों के वस्त्र हरण कर लेना जीत का चिह्न समझा जाता था। जब दुर्योधन को होश आया तो भीष्म ने उससे कहा कि अब वापस हस्तिनापुर लौट चलना चाहिए। भीष्म की सलाह मानकर सारी सेना हार मानकर हस्तिनापुर की ओर लौट चली। इधर युद्ध से लौटते हुए अर्जुन ने कहा- "उत्तर! अपना रथ नगर की ओर ले चलो। तुम्हारी गायें छुड़ा ली गई। शत्रु भी भाग खड़े हुए।इस विजय का यश तुम्हीं को मिलना चाहिए। इसलिये चंदन लगाकर और फूलों का हार पहनकर नगर में प्रवेश करना।" रास्ते में शमी के वृक्ष पर अपने अस्त्रों को ज्यों-का-त्यों रखकर अर्जुन ने फिर से बृहन्नला का वेश धारण कर लिया और राजकुमार उत्तर को रथ पर बैठाकर सारथी के स्थान पर खुद बैठ गया। विराट नगर की ओर कुछ दूतों को यह आज्ञा देकर भेज दिया कि जाकर घोषणा कर दो कि राजकुमार उत्तर की विजय हुई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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