श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
प्रथम अध्याय संबंध- पूर्वश्लोक में युद्ध का दुष्परिणाम बताकर अब अर्जुन युद्ध करने का सर्वथा अनौचित्य बताते हैं।
अर्थ- इसलिए अपने बांधव इन धृतराष्ट्र संबंधियों को मारने के लिए हम योग्य नहीं हैं क्योंकि हे माधव! अपने कुटुम्बियों को मारकर हम कैसे सुखी होंगे? व्याख्या- ‘तस्मान्नर्हा वयं हन्तु धार्तराष्ट्रान् स्वबांधवान्’- अभी तक[1] मैंने कुटुम्बियों को न मारने में जितनी युक्तियाँ, दलीलें दी हैं, जितने विचार प्रकट किए हैं, उनके रहते हुए हम ऐसे अनर्थकारी कार्य में कैसे प्रवृत्त हो सकते हैं? अपने बान्धव इन धृतराष्ट्र संबंधियों को मारने का कार्य हमारे लिए सर्वथा ही अयोग्य है, अनुचित है। हम- जैसे अच्छे पुरुष ऐसा अनुचित कार्य कर ही कैसे सकते हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1।28 से लेकर यहाँ तक
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