श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
सप्तदश अध्याय
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे
श्रद्धात्रयविभागयोगो नाम सप्तदशोऽध्यायः।।17।।
अर्थ- इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवन्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्रूप श्रीकृष्णार्जुनसंवादमें ‘श्रद्धात्रयविभागयोग’ नामक सत्रहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ।।17।।
इस अध्याय में श्रद्धा के तीन विभाग किए गए हैं- सात्त्विकी, राजसी और तामसी। इस विभाग को जो ठीक-ठीक जान लेगा, वह सात्त्विकी श्रद्धा का ग्रहण और राजसी-तामसी श्रद्धा का त्याग कर देगा। राजसी-तामसी श्रद्धा का त्याग करते ही (सात्त्विकी श्रद्धा से) भगवान के साथ स्वतः सिद्ध नित्य संबंध का अनुभव हो जाएगा। इसलिए इस अध्याय का नाम ‘श्रद्धात्रयविभागयोग’ रखा गया है।
सत्रहवें अध्याय के पद, अक्षर और उवाच
1. इस अध्याय में ‘अथ सप्तदशोऽध्यायः’ के तीन, ‘अर्जुन उवाच’ आदि के पदों के चार, श्लोकों के तीन सौ अड़तीस और पुष्पिका के तेरह पद हैं। इस प्रकार संपूर्ण पदों का योग तीन सौ अट्ठावन है।
2. इस अध्याय में ‘अथ सप्तदशोऽध्यायः’ के आठ, ‘अर्जुन उवाच’ आदि के तेरह, श्लोकों के आठ सौ छियानबे और पुष्पिका के इक्यावन अक्षर हैं। इस प्रकार संपूर्ण अक्षरों का योग नौ सौ अड़सठ है। इस अध्याय के सभी श्लोक बत्तीस अक्षरों के हैं।
3. इस अध्याय में दो उवाच है- ‘अर्जुन उवाच’ और ‘श्रीभगवानुवाच’।
सत्रहवें अध्याय में प्रयुक्त छन्द
इस अध्याय के अट्ठाईस श्लोकों में से तीसरे श्लोक के पहले चरण में ‘मगण’ और तीसरे चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘संकीर्ण-विपुला’; दसवें और बारहवें श्लोक के प्रथम चरण में तथा पच्चीसवें-छब्बीसवें श्लोकों के तृतीय चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुला’; सोलहवें-सत्रहवें श्लोकों के प्रथम चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; ग्यारहवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘भ-विपुला’; और उन्नीसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होन से ‘र-विपुला’ संज्ञा वाले छंद हैं। शेष उन्नीस श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप् छन्द के लक्षणों से युक्त हैं।
|