श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
चतुर्दश अध्याय
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवन्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्रूप श्रीकृष्णार्जुनसंवाद में ‘गुणत्रयविभागयोग’ नामक चौदहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ । इस अध्याय में सत्त्व, रज और तम- इन तीनों गुणों का विभागपूर्वक वर्णन किया गया है। इन तीनों गुणों से अतीत होने पर, इनका संबंध छूटने पर परमात्मा के साथ नित्ययोग का अनुभव हो जाता है। इसलिए इस अध्याय का नाम ‘गुणत्रयविभागयोग’ रखा गया है।
इस अध्याय के सत्ताईस श्लोकों में से- पाँचवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुलाः’; छठें और दसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होने से ‘र-विपुला’; पंद्रहवें और सत्रहवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘भ-विपुला’; उन्नीसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; और नवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘भगण’ तथा तीसरे चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘संकीर्ण विपुला’ संज्ञा वाले छन्द हैं। शेष बीस श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्ठ्प् छन्द के लक्षणों से युक्त हैं। |
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