श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
षष्ठ अध्याय
संकल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः। व्याख्या- [जो स्थिति कर्मफल का त्याग करने वाले कर्मयोगी की होती है[1], वही स्थिति सगुण साकार भगवान का ध्यान करने वाले की[2] तथा अपने स्वरूप का ध्यान करने वाले ध्यानयोगी की भी होती है।[3] अब निर्गुण निराकार का ध्यान करने वाले की भी वही स्थिति होती है- यह बताने के लिए भगवान आगे का प्रकरण कहते हैं।] ‘संकल्पप्रभवान्कामांस्त्यक्त्वा सर्वानशेषतः’- सांसारिक वस्तु, व्यक्ति, पदार्थ, देश, काल, घटना, परिस्थिति आदि को लेकर मन में जो तरह-तरह की स्फुरणाएँ होती हैं, उन स्फुरणाओं में से जिस स्फुरणा में प्रियता, सुंदरता और आवश्यकता दिखती है, वह स्फुरणा ‘संकल्प’ का रूप धारण कर लेती है। ऐसे ही जिस स्फुरणा में ‘ये वस्तु, व्यक्ति बड़े खराब हैं, ये हमारे उपयोगी नहीं है’- ऐसा विपरीत भाव पैदा हो जाता है, वह स्फुरणा भी ‘संकल्प’ बन जाती है। संकल्प से ‘ऐसा होना चाहिए और ऐसा नहीं चाहिए’- यह ‘कामना’ उत्पन्न होती है। इस प्रकार संकल्प से उत्पन्न होने वाली कामनाओं का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। यहाँ ‘कामान्’ पद बहुवचन में आया है, फिर भी इसके साथ ‘सर्वान्’ पद देने का तात्पर्य है कि कोई भी और किस भी तरह की कामना नहीं रहनी चाहिए। ‘अशेषतः’ पद का तात्पर्य है कि कामना का बीज (सूक्ष्म संस्कार) भी नहीं रहना चाहिए। कारण कि वृक्ष के एक बीज से ही मीलों तक का जंगल पैदा हो सकता है। अतः बीजरूप कामना का भी त्याग होना चाहिए। ‘मनसैवेन्द्रियग्रामं विनियम्य समन्ततः’- जिन इंद्रियों से शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध- इन विषयों का अनुभव होता है, भोग होता है, इन इंद्रियों के समूह का मन के द्वारा अच्छी तरह से नियमन कर लेंं अर्थात मन से इंद्रियों को उनके अपने-अपने विषयों से हटा लेंं। ‘समन्ततः’ कहने का तात्पर्य है कि मन से शब्द स्पर्श आदि विषयों का चिंतन हो और सांसारिक मान, बड़ाई, आराम आदि की तरफ किञ्चिन्मात्र भी खिंचाव न हो। तात्पर्य है कि ध्यानयोगी को इंद्रियों और अंतःकरण के द्वारा प्राकृत पदार्थों से सर्वथा संबंध विच्छेद का निश्चय कर लेना चाहिए। संबंध- पूर्वश्लोक में भगवान ने संपूर्ण कामनाओं का त्याग एवं इंद्रियों का निग्रह करने के निश्चय की बात कही। अब कामनाओं का त्याग और इंद्रियों का निग्रह कैसे करें- इसका उपाय आगे के श्लोक में बताते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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