श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
षोडश अध्याय
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे दैवासुर सम्पद्वि भाग योगो नाम षोडशोऽध्यायः ।।16।।
इस (सोलहवें) अध्याय का नाम ‘दैवासुरसम्पदविभागयोग’ है; क्योंकि इस अध्याय में जो दोनों संपत्तियों का वर्णन हुआ है, वह परस्पर एक दूसरे से बिलकुल विरुद्ध है अर्थात दैवी संपत्ति कल्याण करने वाली है और आसुरी-संपत्ति बाँधने वाली तथा नीच योनियों और नरकों में ले जाने वाली है। जो साधक इन दोनों विभागों को ठीक रीति से जान लेगा, वह आसुरी संपत्ति का सर्वथा त्याग कर देगा। आसुर संपत्ति का सर्वथा त्याग होते ही दैवी संपत्ति स्वतः प्रकट हो जाएगी। दैवी संपत्ति प्रकट होते ही एकमात्र परमात्मा से संबंध रह जाएगा।
सोलहवें अध्याय में प्रयुक्त छन्द इस अध्याय के चौबीस श्लोकों में से- छठे श्लोक के प्रथम चरण में, दसवें श्लोक के तृतीय चरण में और बाईसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; तथा ग्यारहवें, तेरहवें और उन्नीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुला’ संज्ञा वाले छंद हैं। शेष अठारह श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप् छंद के लक्षणों से युक्त हैं। |
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज