श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टम अध्याय
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवन्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्रूप श्रीकृष्णार्जुनसंवाद में ‘अक्षरब्रह्मयोग’ नामक आठवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ।।8।। ‘अक्षर’ और ‘ब्रह्म’ शब्द परमात्मा के निर्गुण-निराकार, सगुण-निराकार और सगुण-साकार- इन तीनों स्वरूपों के वाचक हैं। इन तीनों में से किसी भी स्वरूप का चिंतन करने से परमात्मा के साथ योग (संबंध) हो जाता है। अतः इस अध्याय का नाम ‘अक्षर ब्रह्मयोग’ रखा गया है।
इस अध्याय के अट्ठाईस श्लोकों में से नवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ- ये तीन श्लोक ‘उपजाति’ छन्द वाले हैं, और अट्ठाईसवाँ श्लोक ‘इंद्रवज्जा’ छंद वाला है। बचे हुए चौबीस श्लोकों में से- दूसरे श्लोक के तृतीय चरण में और चौदहवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘भ-विपुला’; चौबीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; सत्ताईसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होने से ‘र-विपुला’ तथा तीसरे श्लोक के प्रथम और तृतीय चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘जातिपक्ष-विपक्षा’ संज्ञा वाले छंद हैं। शेष उन्नीस श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप् छन्द के लक्षणों से युक्त हैं। |
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