श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे मोक्षसंन्यास योगो नामाष्टादशोऽध्यायः।
इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवन्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्रूतप श्रीकृष्णार्जुनसंवाद में ‘मोक्षसंन्यास योग’ नामक अठारहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ।
जिसमें मोक्ष का भी संन्यास अर्थात त्याग हो जाता है, ऐसी भगवद्भक्ति का वर्णन मुख्य होने के कारण इस अध्याय का नाम ‘मोक्षसंन्यास योग’ रखा गया है।
अठारहवें अध्याय के पद, अक्षर और उवाच
1. इस अध्याय में ‘अथाष्टादशोऽध्यायः’ के तीन, ‘अर्जुन उवाच’ आदि पदों के आठ श्लोकों के नौ सौ नवासी और पुष्पिका के तेरह पद हैं। इस प्रकार संपूर्ण पदों का योग एक हज़ार तेरह है।
2. इस अध्याय में ‘अथाष्टादशोऽध्यायः’ के सात, ‘अर्जुन उवाच’ आदि पदों के पच्चीस, श्लोकों को हज़ार चार सौ छियानबे और पुष्पिका के अड़तालीस अक्षर हैं। इस प्रकार संपूर्ण अक्षरों का योग दो हज़ार पाँच सौ छिहत्तर है। इस अध्याय के सभी श्लोक बत्तीस अक्षरों के हैं।
3. इस अध्याय में चार उवाच है- दो ‘अर्जुन उवाच’, एक ‘श्रीभगवानुवाच’ और एक ‘संजय उवाच’।
अठारहवें अध्याय में प्रयुक्त छन्द
इस अध्याय के अठहत्तर श्लोकों में से बारहवें, छियालीसवें और बावनवें श्लोक के प्रछम चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; तेईसवें, बत्तीसवें, सैंतीसवें, इकतालीसवें, पैंतालीसवें, छप्पनवें और सत्तरवें, श्लोक के प्रथम चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुला’; तैंतीसवें, छत्तीसवें, सैंतालीसवें और पचहत्तरवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘भ-विपुला’; तेरहवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; छब्बीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होने से ‘र-विपुला’; अड़तीसवें और चौंसठवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुला’; उनचासवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; और तृतीय चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; और तृतीय चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘भ-विपुला’; संज्ञा वाले छन्द हैं। शेष उनसठ श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप छन्द के लक्षणों से युक्त हैं।
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