श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
पंचैतानि महाबाहो कारणानि निबोध मे ।
व्याख्या- ‘पञ्चैतानि महाबाहो कारणानि’- हे महाबाहो! जिसमें संपूर्ण कर्मों का अंत हो जाता है, ऐसे सांख्यसिद्धांत में संपूर्ण विहित और निषिद्ध कर्मों के होने में पाँच हेतु बताए गये हैं। ‘स्वयं’ (स्वरूप) उन कर्मों में हेतु नहीं है। ‘निबोध मे’- इस अध्याय में भगवान ने जहाँ सांख्य-सिद्धांत का वर्णन आरंभ किया है, वहाँ ‘निबोध’ क्रिया का प्रयोग किया है[1], जबकि दूसरी जगह ‘श्रृणु’ क्रिया का प्रयोग किया है।[2] तात्पर्य यह है कि सांख्य सिद्धांत में तो ‘निबोध’ पद से अच्छी तरह समझने की बात कही है और दूसरी जगह ‘श्रृणु’ पद से सुनने की बात कही है। अतः सांख्यसिद्धांत को गहरी रीति से समझना चाहिए। अगर उसे अपने-आप (स्वयं) से गहरी रीति से समझा जाए, तो तत्काल तत्त्व का अनुभव हो जाता है। ‘सांख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि सिद्धये सर्वकर्मणाम्’- कर्म चाहे शास्त्रविहित हों, चाहे शास्त्रनिषिद्ध हों, चाहे शारीरिक हों, चाहे मानसिक हों, चाहे वाचिक हों, चाहे स्थूल हों और चाहे सूक्ष्म हों- इन संपूर्ण कर्मों की सिद्धि के लिए पाँच हेतु कहे गए हैं। जब पुरुष का इन कर्मों में कर्तृत्व रहता है, तब कर्मसिद्धि और कर्मसंग्रह दोनों होते हैं, और जब पुरुष का इन कर्मों के होने में कर्तृत्व नहीं रहता, तब कर्मसिद्धि तो होती है, पर कर्मसंग्रह नहीं होता, प्रत्युत क्रियामात्र होती है। जैसे, संसारमात्र में परिवर्तन होता है अर्थात नदियाँ बहती हैं, वायु चलती है, वृक्ष बढ़ते हैं आदि-आदि क्रियाएँ होती रहती हैं, परंतु इन क्रियाओं से कर्मसंग्रह नहीं होता अर्थात ये क्रियाएँ पाप-पुण्यजनक अथवा बंधन कारक नहीं होती। तात्पर्य यह हुआ कि कर्तृत्वाभिमान से ही कर्मसिद्धि और कर्मसंग्रह होता है। कर्तृत्वाभिमान मिटने पर क्रियामात्र में अधिष्ठान, करण, चेष्टा और दैव- ये चार हेतु ही होते हैं।[3] यहाँ सांख्यसिद्धांत का वर्णन हो रहा है। सांख्यसिद्धांत में विवेक-विचार की प्रधानता होती है, फिर भगवान ने ‘सर्वकर्मणां सिद्धये’ वाली कर्मों की बात यहाँ क्यों छेड़ी? कारण कि अर्जुन के सामने युद्ध का प्रसंग है। क्षत्रिय होने के नाते युद्ध उनका कर्तव्य कर्म है। इसलिए कर्मयोग से अथवा सांख्ययोग से ऐसे कर्म करने चाहिए, जिससे कर्म करते हुए भी कर्मों से सर्वथा निर्लिप्त रहे- यह बात भगवान को कहानी है। अर्जुन ने सांख्य का तत्त्व पूछा है, इसलिए भगवान सांख्यसिद्धांत से कर्म करने की बात कहना आरंभ करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 18।13, 50
- ↑ 18।4, 19, 29, 36, 45, 64
- ↑ गीता 18:14
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