श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान् । अर्थ- अर्जुन बोले- हे देव! मैं आपके शरीर में संपूर्ण देवताओं को, प्राणियों के विशेष-विशेष समुदायों को, कमलासन पर बैठे हुए ब्रह्मा जी को, शंकर जी को, संपूर्ण ऋषियों को और संपूर्ण दिव्य सर्पों को देख रहा हूँ। व्याख्या- ‘पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान्’- अर्जुन की भगवत्प्रदत्त दिव्यदृष्टि इतनी विलक्षण है कि उनको देवलोक भी अपने सामने दिख रहे हैं। इतना ही नहीं, उनको सब-की-सब त्रिलोकी दिख रही है। केवल त्रिलोकी की ही नहीं, प्रत्युत त्रिलोकी के उत्पादक (ब्रह्मा), पालक (विष्णु) और संहारक (महेश) भी प्रत्यक्ष दिख रहे हैं। अतः अर्जुन वर्णन करते है कि मैं संपूर्ण देवों को, प्राणियों के समुदायों को और ब्रह्मा तथा शंकर को देख रहा हूँ। ‘ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थम्’- अर्जुन कहते हैं कि मैं कमल के ऊपर स्थित ब्रह्मा जी को देखता हूँ- इससे सिद्ध होता है कि अर्जुन कमल के नाल को और नाल के उद्गम-स्थान अर्थात मूल आधार भगवान विष्णु को जो कि शेषशय्या पर सोये हुए हैं, भी देख रहे हैं। इसके सिवाय भगवान शंकर को, उनके कैलास पर्वत को और कैलास पर्वत पर स्थित उनके निवास स्थान वटवृक्ष को भी अर्जुन देख रहे हैं। ‘ऋषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्’- पृथ्वी पर रहने वाले जितने भी ऋषि हैं, उनको तथा पाताल लोक में रहने वाले दिव्य सर्पों को भी अर्जुन देख रहे हैं। इस श्लोक में अर्जुन के कथन से यह सिद्ध होता है कि उन्हें स्वर्ग, मृत्यु और पाताल- यह त्रिलोकी अलग-अलग नहीं दिख रही है; किंतु विभाग सहित एक साथ एक जगह ही दिख रही है- ‘प्रविभक्तमनेकधा’।[1] उस त्रिलोकी से जब अर्जुन की दृष्टि हटती है, तब जिनको ब्रह्मलोक, कैलास और वैकुण्ठलोक कहते हैं, वे अधिकारियों के अभीष्ट लोक तथा उनके मालिक[2] भी अर्जुन को दिखते हैं। यह सब भगवत्प्रदत्त दिव्यदृष्टि का ही प्रभाव है। जब भगवान ने कहा कि यह संपूर्ण जगत मेरे किसी एक अंश में है, तब अर्जुन उसे दिखाने की प्रार्थना करते हैं। अर्जुन की प्रार्थना पर भगवान कहते हैं कि तू मेरे शरीर में एक जगह स्थित चराचर जगत को देख- ‘इह एकस्थं......मम देहे’।[3] वेदव्यास जी द्वारा प्राप्त दिव्यदृष्टि वाले संजय भी यही बात कहते हैं कि अर्जुन ने भगवान के शरीर में एक जगह स्थित संपूर्ण जगत को देखा- ‘तत्र एकस्थं.....देवदेवस्य शरीरे’।[4] यहाँ अर्जुन कहते है कि मैं आपके शरीर में संपूर्ण भूतसमुदाय आदि को देखता हूँ- ‘तव देव देहे।’ इस प्रकार भगवान और संजय के वचनों में तो ‘एकस्थम्’ (एक जगह स्थित) पद आया है, पर अर्जुन के वचनों में यह पद नहीं आया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गीता 11:13
- ↑ ब्रह्मा, शंकर और विष्णु
- ↑ गीता 11:7
- ↑ गीता 11:13
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