श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
दशम अध्याय
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विभूति योग ो नामदशमोऽध्यायः ।।
अर्थ- इस प्रकार ‘ऊँ, तत्, सत्’- इन भगवन्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भागवद्गीतोपनिषद्रूप श्रीकृष्णार्जुनसंवाद में ‘विभूति योग ’ नामक दसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ।
जहाँ कहीं जो कुछ भी विशेषता दिखती है, वह सब भगवान की ही विभूति है- ऐसा मानने से भगवान के साथ योग (संबंध) का अनुभव हो जाता है। इसलिए दसवें अध्याय का नाम ‘विभूति योग ’ है।
दसवें अध्याय के पद, अक्षर और उवाच
- इस अध्याय में ‘अथ दशमोऽध्यायः’ के सात, ‘अर्जुन उवाच’ आदि पदों के बीस, श्लोकों के एक हजार तीन सौ चौबालीस और पुष्पिका के छियालीस अक्षर हैं। इस प्रकार संपूर्ण अक्षरों का योग एक हजार चार सौ सत्रह है। इस अध्याय के सभी श्लोक बत्तीस अक्षरों के हैं।
- इस अध्याय में तीन उवाच हैं- दो ‘भगवानुवाच’ और एक ‘अर्जुन उवाच’।
दसवें अध्याय में प्रयुक्त छन्द
इस अध्याय के बयालीस श्लोकों में से- दूसरे और पच्चीसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न विपुलाः;’ सातवें श्लोक के प्रथम चरण में तथा पाँचवें और बत्तीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘मगण’ प्रयुक्त होने से ‘म-विपुला’; आठवें श्लोक के प्रथम चरण में और छब्बीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘भ-विपुला’; और छठे श्लोक के प्रथम चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होने से ‘र-विपुला’ संज्ञा वाले के छन्द हैं। शेष छत्तीस श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप् छन्द के लक्षणों से युक्त हैं।
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