श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
प्रथम अध्याय संबंध- अब संजय आगे के चार श्लोकों में पूर्व श्लोक का खुलासा करते हुए दूसरों के शंखवादन का वर्णन करते हैं।[1] पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः। व्याख्या- ‘पाञ्यजन्यं हृषीकेशः’- सबके अन्तर्यामी अर्थात सबके भीतर की बात जाने वाले साक्षात भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डवों के पक्ष में खड़े होकर ‘पाञ्चजन्य’ नामक शंख बजाया। भगवान पंचजन नामक शंख रुपधारी दैत्य को मारकर उसको शंखरुप से ग्रहण किया था, इसलिए इस शंख का नाम ‘पाञ्चजन्य’ हो गया। अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। व्याख्या- ‘अनन्तविजयं राजा....... सुघोषमणि पुष्पकौ’- अर्जुन, भीम और युधिष्ठिर- ये तीनों कुंती के पुत्र हैं तथा नकुल और सहदेव- ये दोनों माद्री के पुत्र हैं, यह विभाग दिखाने के लिए ही यहाँ युधिष्ठिर के लिए ‘कुंतीपुत्र’ विशेषण दिया गया है। युधिष्ठिर को राजा कहने का तात्पर्य है कि युधिष्ठिर जी वनवास के पहले अपने आधे राज्य[3] के राजा थे, और नियम के अनुसार बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास के बाद वे राजा होने चाहिए थे। ‘राजा’ विशेषण देकर संजय यह भी संकेत करना चाहते हैं कि आगे चलकर धर्मराज युद्धिष्ठिर ही संपूर्ण पृथ्वीमंडल के राजा होंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सा.सं. 2
- ↑ सर्वाञ्जनपदाञ्जिच्वा वित्तादाप केवलम्। मध्ये धनस्य तिष्ठामि तेनाहुर्मां धनञ्जयम्।।(महा.वि. 44।13)
- ↑ इंद्रप्रस्थ
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज