श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
(1) अर्थ- धन को ‘अर्थ’ कहते हैं। वह धन दो तरह का होता है -स्थावर और जंगम। सोना, चाँदी, रुपये, जमीन, जायदाद, मकान आदि स्थावर है और गाय, भैस, घोड़ा , ऊँट, भेड़, बकरी आदि जंगम है। (2) धर्म- समाक अथवा निष्माक भाव से जो यज्ञ, तप, दान, व्रत, तीर्थ, आदि किये जाते है, उसको 'धर्म' कहते है। (3) काम- सांसरिक सुख-भोग को 'काम' कहते हैं। वह सुख भोग आठ तरह का होता है- शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्द, मान, बड़ाई, और आराम। (क) शब्द- शब्द दो तरह का होता है- वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक। व्याकरण, कोश, साहित्य, उपन्यास, गल्प, कहानी, आदि 'वर्णात्मक' शब्द हैं।[1] खाल, तार, फूँक के तीन बाजे और ताल का आधा बाजा- ये साढ़े तीन प्रकार के बाजे 'ध्वन्यात्मक' शब्दों को प्रकट करने वाले है[2] इन वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक शब्दों को सुनने से जो सुख मिलता है वह शब्द का सुख है। (ख) स्पर्श- स्त्री, पुत्र, मित्र, आदि के साथ मिलने से तथा ठण्डा, गर्म, कोमल आदि से अर्थात उनका त्वचा के साथ संयोग होने से जो सुख होता है, वह स्पर्श का सुख होता है। (ग) रूप- नेत्रों से खेल, तमाशा, सिनेमा, बाजीगरी वन, पहाड़ सरोवर, मकान, आदि की सुन्दरता को देख जो सुख होता है, वह रूप का सुख है। (घ) रस- मधुर (मीठा), अम्ल (खट्टा), लवण (नमकीन), कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा), और कषाय (कसैला), इन छ: रसों को चखने से सुख होता है, वह रस होता है। (ड़) गन्ध- नाक से अतर, तेल, फुलेल, लवेण्डर, पुष्प, आदि सुगन्ध वाले और लहसुन, प्याज, आदि दुर्गन्ध वाले पदार्थों को सुँघने से जो सुख होता है, वह गन्ध का सुख होता है। (च) मान- शरीर का आदर-सत्कार होने से जो सुख होता है, वह गन्ध का सुख होता है। (छ) बढ़ाई- नाम की प्रशंसा, वाह-वाह होने से जो सुख होता है, वह बड़ाई का सुख है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वर्णात्मक शब्दों में भी दस रस होते हैं - श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्य, अद्भुत, शान्त और वात्सल्य। ये दसों ही रस चित्त द्रवित होने से होते हैं। इन दसों रसों का उपयोग भगवान के लिये किया जाय तो ये सभी रस कल्याण करने वाले हो जाते है और इनसे सुख भोगा जाय तो ये सभी रस पतन करने वाले हो जाते है।
- ↑ ढोल ,ढोलकी, तबला, पखावज, मृदंग आदि 'खाल' के; सितार, सारंगी, मोरचंग आदि 'तार' के; मशक पेटी (हारमोनियम), बाँसुरी, पूँगी आदि 'फूँक' के और झाँझ, मंसीरा, कारताल आदि 'ताल' के बाजे है।
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