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प्रथम अध्याय
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च- यद्यपि पुरुजित और कुंतिभोज- ये दोनों कुंती के भाई होने से हमारे और पांडवों के मामा हैं, तथापि इनके मन में पक्षपात होने के कारण ये हमारे विपक्ष में युद्ध करने के लिए खड़े हैं।
[पुरुजित और कुंतिभोज- दोनों ही युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गए।]
‘शैब्यश्च नरपुंगवः’- यह शैव्य युधिष्ठिर का श्वशुर है। यह मनुष्यों में श्रेष्ठ और बहुत बलवान है। परिवार के नाते यह भी हमारा सम्बन्ध है। परंतु यह पांडवों के ही पक्ष में खड़ा है।
‘युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्’- पाश्चाल देश के बड़े बलवान और वीर योद्धा युधामन्यु तथा उत्तमौजा मेरे वैरी अर्जुन के रथ के पहियों की रक्षा में नियुक्त किए गए हैं। आप इनकी ओर भी नजर रखना।
[रात में सोते हुए इन दोनों को अश्वत्थामा ने मार डाला।]
सौभद्रः- यह कृष्ण की बहन सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु है। यह बहुत शूरवीर है। इसने गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन की विद्या सीखी है। अतः चक्रव्यूह रचना के समय आप इसका ख्याल रखें।
[युद्ध में दुःशासन पुत्र के द्वारा अन्यापूर्वक सिर पर गदा का प्रहार करने से अभिमन्यु मारे गए।]
‘द्रौपदेयाश्च'- युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव- इन पाँचों के द्वारा द्रौपदी के गर्भ से क्रमशः प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक और श्रुतसेन पैदा हुए हैं। इन पाँचों को आप देख लीजिए।द्रौपदी ने भरी सभा में मेरी हँसी उड़ाकर मेरे हृदय को जलाया है, उसी के इन पाँचों पुत्रों को युद्ध में मारकर आप उसका बदला चुकायें।
[रात में सोते हुए इन पाँचों को अश्वत्थामा ने मार डाला।]
‘सर्व एव महारथाः’- ये सब-के-सब महारथी हैं। जो शास्त्र और शस्त्रविद्या- दोनों में प्रवीण हैं और युद्ध में अकेले ही एक साथ दस हजार धनुर्धारी योद्धाओं का संचालन कर सकता है, उस वीर पुरुष को ‘महारथी’ कहते हैं[1]। ऐसे बहुत से महारथी पांडव सेना में खड़े हैं।
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