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प्रथम अध्याय
ऐसे बड़े-बड़े धनुष पास में होने के कारण ये सभी बहुत बलवान और शूरवीर हैं। ये मामूली योद्धा नहीं है। युद्ध में भीम और अर्जुन के समान हैं अर्थात बल में ये भीम के समान और अस्त्र-शस्त्र की कला में ये अर्जुन के समान हैं।
युयुधानः- युयुधान[1] ने अर्जुन से अस्त्र-शस्त्र की विद्या सीखी थी। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा दुर्योधन को नारायणी सेना देने पर भी वह कृतज्ञ होकर अर्जुन के पक्ष में ही रहा, दुर्योधन के पक्ष में नहीं गया। द्रोणाचार्य के मन में अर्जुन के प्रति द्वेषभाव पैदा करने के लिए दुर्योधन महारथियों में सबसे पहले अर्जुन के शिष्य युयुधान का नाम लेता है। तात्पर्य है कि इस अर्जुन को तो देखिए! इसने आपसे ही अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखा है और आपने अर्जुन को यह वरदान भी दिया है कि संसार में तुम्हारे समान और कोई धनुर्धर न हो, ऐसा प्रत्यन करूँगा[2]। इस तरह आपने तो अपने शिष्य अर्जुन पर इतना स्नेह रखा है, पर वह कृतघ्न होकर आपके विपक्ष में लड़ने के लिए खड़ा है, जबकि अर्जुन का शिष्य युयुधान उसी के पक्ष में खड़ा है।
[युयुधान महाभारत के युद्ध में न मरकर यादवों के आपसी युद्ध में मारे गए।]
विराटश्च- जिसके कारण हमारे पक्ष का वीर सुशर्मा अपमानित किया गया, आपको सम्मोहन अस्त्र से मोहित होना पड़ा और हम लोगों को भी जिसकी गायें छोड़कर युद्ध से भगना पड़ा, वह राजा विराट आपके प्रतिपक्ष में खड़ा है। राजा विराट के साथ द्रोणाचार्य का ऐसा कोई वैरभाव या द्वेषभाव नहीं था; परंतु दुर्योधन यह समझता है कि अगर ययुधान के बाद मैं द्रुपद का नाम लूँ तो द्रोणाचार्य के मन में यह भाव आ सकता है कि दुर्योधन पांडवों के विरोध में मेरे को उकसाकर युद्ध के लिए विशेषता से प्रेरणा कर रहा है तथा मेरे मन में पांडवों के प्रति वैरभाव पैदा कर रहा है। इसलिए दुर्योधन द्रुपद के नाम से पहले विराट का नाम लेता है, जिससे द्रोणाचार्य मेरी चालाकी न समझ सकें और विशेषता से युद्ध करें।
[राजा विराट उत्तर, श्वेत और शंख नामक तीनों पुत्रों सहित महाभारत- युद्ध में मारे गए।]
‘द्रुपदश्च महारथः’- आपने तो द्रुपद को पहले की मित्रता याद दिलायी, पर उसने सभा में यह कहकर आपका अपमान किया कि मैं राजा हूँ और तुम भिक्षुक हो; अतः मेरी-तुम्हारी मित्रता कैसी? तथा वैरभाव के कारण आपको मारने के लिए पुत्र भी पैदा किया, वही महारथी द्रुपद आपसे लड़ने के ले विपक्ष में खड़ा है।
[राजा द्रुपद युद्ध में द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गए।]
धृष्टकेतुः- यह धृष्टकेतु कितना मूर्ख है कि जिसके पिता शिशुपाल को कृष्ण ने भरी सभा में चक्र से मार डाला था, उसी कृष्ण के पक्ष में यह लड़ने के लिए खड़ा है!
[धृष्टकेतु द्रोणाचार्य के हाथ से मारे गए।]
चेकितानः- सब यादव सेना तो हमारी ओर से लड़ने के लिए तैयार है और यह यादव चेकितान पांडवों की सेना में खडा है!
[चेकितान दुर्योधन के हाथ से मारे गए।]
काशिराजश्च वीर्यवान्- यह काशिराज बड़ा ही शूरवीर और महारथी है। यह भी पांडवों की सेना में खड़ा है। इसलिए आप सावधानी से युद्ध करना; क्योंकि यह बड़ा पराक्रमी है।
[काशिराज महाभारत-युद्ध में मारे गए।]
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