प्रथम अध्याय
|
1-11
|
पाण्डव और कौरव सेना के मुख्य महारथियों के नामों का वर्णन
|
-
|
12-19
|
दोनों पक्षों की सेनाओं के शंख वादन का वर्णन
|
15
|
20-27
|
अर्जुन के द्वारा सेना-निरीक्षण
|
27
|
28-47
|
अर्जुन के द्वारा कायरता, शोक और पश्चात्तापयुक्त वचन कहना तथा संजय द्वारा शोकाविष्ट अर्जुन की अवस्था का वर्णन
|
39
|
|
पहले अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
50
|
द्वितीय अध्याय
|
1-10
|
अर्जुन की कायरता के विषय में संजय द्वारा भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद का वर्णन
|
1
|
11-30
|
सांख्ययोग का वर्णन
|
17
|
31-38
|
क्षात्रधर्म की दृष्टि से युद्ध करने की आवश्यकता का प्रतिपादन
|
52
|
39-53
|
कर्मयोग का वर्णन
|
61
|
54-72
|
स्थित प्रज्ञ के लक्षणों आदि का वर्णन
|
81
|
|
दूसरे अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
104
|
तृतीय अध्याय
|
1-8
|
सांख्ययोग और कर्मयोग की दृष्टि से कर्तव्य-कर्म करने की आवश्यकता का निरूपण
|
105
|
9-19
|
यक्ष और सृष्टिचक्र की परम्परा सुरक्षित रखने के लिये कर्तव्य-कर्म करने की आवश्यकता का निरूपण
|
121
|
20-29
|
लोक संग्रह के लिये कर्तव्य-कर्म करने की आवश्यकता का निरूपण
|
147
|
30-35
|
राग-द्वेषरहित होकर स्वधर्म के अनुसार कर्तव्य-कर्म करने की प्रेरणा
|
165
|
36-43
|
पापों के कारणभूत 'काम' को मारने की प्रेरणा
|
189
|
|
तीसरे अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
210
|
चतुर्थ अध्याय
|
1-15
|
कर्मयोग की परम्परा और भगवान के जन्मों तथा कर्मों की दिव्यता का वर्णन
|
211
|
16-32
|
कर्मों के तत्त्व का और तदनुसार यज्ञों का वर्णन
|
256
|
33-42
|
ज्ञानयोग और कर्मयोग की प्रशंसा तथा प्रेरणा
|
288
|
|
चौथे अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
306
|
पंचम अध्याय
|
1-6
|
सांख्यायोग तथा कर्मयोग की एकता का प्रतिपादन और कर्मयोग की प्रंशसा
|
307
|
7-12
|
सांख्ययोग और कर्मयोग के साधन का प्रकार
|
322
|
13-26
|
फल सहित सांख्ययोग का विषय
|
338
|
27-29
|
ध्यान और भक्ति का वर्णन
|
365
|
|
पाँचवे अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
370
|
षष्ठ अध्याय
|
1-4
|
कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ मनुष्य के लक्षण
|
371
|
5-9
|
आत्मोद्धार के लिये प्रेरणा और सिद्ध कर्मयोग के लक्षण
|
382
|
10-15
|
आसन की विधि और फलसहित सगुण-साकार के ध्यान का वर्णन
|
397
|
16-23
|
नियमों का फल सहित स्वरूप के ध्यान का वर्णन
|
407
|
24-28
|
फलसहित निर्गुण-निराकार के ध्यान का वर्णन
|
422
|
29-32
|
सगुण और निर्गुण के ध्यान-योगियों का अनुभव
|
432
|
33-36
|
मन के विग्रह का विषय
|
441
|
37-47
|
योगभ्रष्ट की गति का वर्णन और भक्ति योगी की महिमा
|
450
|
|
छठे अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
473
|
सप्तम अध्याय
|
1-7
|
भगवान के द्वारा समग्ररूप के वर्णन की प्रतिज्ञा करना तथा अपरा-परा प्रकतियों के संयोग से प्राणियों की उतपत्ति बताकर अपने को सबका मूल कारण बताना
|
474
|
8-12
|
कारण रूप से भगवान की विभूतियों का वर्णन
|
496
|
13-19
|
भगवान के शरण होने वालों का और शरण न होने वालों का वर्णन
|
508
|
20-23
|
अन्य देवताओं की उपासनाओं का फलसहित वर्णन
|
538
|
24-30
|
भगवान के प्रभाव को जानने वालों की निन्दा और जानने वालों की प्रशंसा तथा भगवान के समरूप का वर्णन
|
544
|
|
सातवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
566
|
अष्टम अध्याय
|
1-7
|
अर्जुन के सात प्रश्न और भगवान के द्वारा उनका उत्तर देते हुए सब के समय में अपना स्मरण करने की आज्ञा देना
|
567
|
8-16
|
सगुण-निराकार, निर्गुण-निराकार और सगुण-साकार की उपासना फलसहित वर्णन
|
587
|
17-22
|
ब्रह्मलोक तक की अवधिका और भगवान की महत्ता तथा भक्ति का वर्णन
|
601
|
23-28
|
शुक्ल और कृष्ण गति का वर्णन उसको जानने वाले योगी की महिमा
|
609
|
|
आठवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
619
|
नवम अध्याय
|
1-6
|
प्रभाव सहित विज्ञान का वर्णन
|
621
|
7-10
|
महासर्ग और महाप्रलय का वर्णन
|
638
|
11-15
|
भगवान का तिरस्कार करने वाले एवं आसुरी, राक्षसी और मोहिनी प्रकृति का आश्रय लेने वालों का कथन तथा दैवी प्रकृति का आश्रय लेने वाले भक्तों के भजन का वर्णन
|
645
|
16-19
|
कार्य-कारण रूप से भगवत्स्वरूप विभूतियों का वर्णन
|
654
|
20-25
|
सकाम और निष्काम उपासना का फलसहित वर्णन
|
658
|
|
पदार्थों और क्रियाओं को भगवदर्पण करने का फल बताकर भक्ति के अधिकारियों का और भक्ति का वर्णन
|
669
|
|
नवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
704
|
दशम अध्याय
|
1-7
|
भगवान की विभूति और योग का कथन तथा उनको जानने की महिमा
|
705
|
8-11
|
फलसहित भगवद्भभक्ति और भगवत्कृपा का प्रभाव
|
719
|
12-18
|
अर्जुन के द्वारा भगवान की स्तुति और योग तथा विभूतियों को कहने के लिये प्रार्थना
|
728
|
19-42
|
भगवान के द्वारा अपनी विभूतियों का और योग का वर्णन
|
735
|
|
दसवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
769
|
एकादश अध्याय
|
1-8
|
विराट्रूप दिखाने के लिये अर्जुन की प्रार्थन और भगवान के द्वारा अर्जुन को दिव्य चक्षु प्रदान करना
|
771
|
9-14
|
संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विराट् रूप का वर्णन
|
783
|
15-31
|
अर्जुन के द्वारा विराट् रूप को देखना और उसकी स्तुति करना
|
789
|
32-35
|
भगवान के द्वारा अपने अत्युग्र विराट रूप का परिचय और युद्ध की आज्ञा
|
809
|
36-46
|
अर्जुन के द्वारा विराटरूप भगवान की स्तुति-प्रार्थना
|
817
|
47-50
|
भगवान के द्वारा विराटरूप के दर्शन की दुर्लभता बताना और अर्जुन को आश्वासन देना
|
831
|
51-55
|
भगवान के द्वारा चतुर्भुज रूप की महत्ता और उसके दर्शन का उपाय बताना
|
839
|
|
ग्यारहवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
848
|
द्वादश अध्याय
|
1-12
|
सगुण और निर्गुण उपासकों की श्रेष्ठता का निर्णय और भगत्प्राप्ति के चार साधनों का वर्णन
|
850
|
13-20
|
सिद्ध भक्तों के उन्तालीस लक्षणों का वर्णन
|
892
|
|
बारहवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
918
|
त्रयोदश अध्याय
|
1-18
|
क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ (जीवात्मा), ज्ञान और ज्ञेय (परमात्मा) का भक्ति-सहित विवेचना
|
920
|
19-34
|
ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विवेचन
|
967
|
|
तेरहवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
992
|
चतुर्दश अध्याय
|
1-4
|
ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत की उत्पत्ति
|
993
|
5-18
|
सत्त्व रज और तम इन तीनों गुणों का विवेचन
|
999
|
19-27
|
भगवत्प्राप्ति का उपाय एवं गुणातीत पुरुष के लक्षण
|
1028
|
|
चौदहवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
1044
|
पंचदश अध्याय
|
1-6
|
संसार का वृक्ष तथा उसका छेदन करके भगवान के शरण होने का और भगवद्धाम का वर्णन
|
1045
|
7-11
|
जीवात्मा का स्वरूप तथा उसे जानने वाले और न जानने वाले का वर्णन
|
1071
|
12-15
|
भगवान के प्रभाव का वर्णन
|
1096
|
16-20
|
क्षर, अक्षर और पुरुषोत्तम का वर्णन तथा अध्याय का उपसंहार
|
1110
|
|
पंद्रहवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
1122
|
षोडश अध्याय
|
1-5
|
फलसहित दैवी और आसुरी सम्पत्ति का वर्णन
|
1123
|
6-8
|
सत्कर्मों से विमुख हुए आसुरी सम्पत्ति वाले मनुष्यों की मान्याताओं का कथन
|
1164
|
9-16
|
आसुरी सम्पत्ति वाले मनुष्यों के दुराचारों और मनोरथों का फलसहित वर्णन
|
1173
|
17-20
|
आसुरी सम्पत्ति वाले मनुष्यों के दुर्भाव और दुर्गति का वर्णन
|
1187
|
21-24
|
आसुरी सम्पत्ति के मूलभूत दोष काम, क्रोध और लोभ से रहित होकर शास्त्र विधि के अनुसार कर्म करने की प्रेरणा
|
1197
|
|
सोलहवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
1204
|
सप्तदश अध्याय
|
1-6
|
तीन प्रकार की श्रद्धा का और आसुर निश्चय वाले मनुष्यों का वर्णन
|
1205
|
7-10
|
सात्त्विक, राजस और तामस आहारी की रुचि का वर्णन
|
1218
|
11-22
|
यज्ञ, तप और दान के तीन-तीन भेदों का वर्णन
|
1230
|
23-28
|
'ॐ तत्सत्' के प्रयोग की व्याख्या और असत्- कर्म का वर्णन
|
1254
|
|
सत्रहवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
1263
|
अष्टादश अध्याय
|
1-12
|
सन्यास के विषय में मतान्तर और कर्मयोग का वर्णन
|
1264
|
13-40
|
सांख्ययोग का वर्णन
|
1310
|
41-48
|
कर्मयोग का भक्तिसहित वर्णन
|
1364
|
49-55
|
सांख्ययोग का वर्णन
|
1408
|
56-66
|
भगवद्भभक्ति का वर्णन
|
1418
|
67-68
|
श्रीमद्भगवदद्गीता की महिमा
|
1490
|
|
अठारहवें अध्याय के पद, अक्षर, उवाच और प्रयुक्त छंद
|
1523
|
|
गीता का परिमाण और पूर्ण शरणागति
|
1524
|
|
आरती
|
अंतिम पृष्ठ
|