|
प्रथम अध्याय
- संकरो नरकायैव कुलघ्रानां कुलस्य च।
- पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रिया ।। 42 ।।
अर्थ- वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने वाला ही होता है। श्राद्ध और तर्पण न मिलने से इन[1] के पितर भी अपने स्थान से गिर जाते हैं।
व्याख्या- ‘संकरो नरकायैव कुलघ्रानां कुलस्य च’- वर्ण-मिश्रण से पैदा हुए वर्णसंकर[2] में धार्मिक बुद्धि नहीं होती। वह मर्यादाओं का पालन नहीं करता;क्योंकि वह खुद बिना मर्यादा से पैदा हुआ है। इसलिए उसके खुद के कुल धर्म न होने से वह उनका पालन नहीं करता, प्रत्युत कुलधर्म अर्थात कुलमर्यादा से विरुद्ध आचरण करता है।
जिन्होंने युद्ध में अपने कुल का संहार कर दिया है, उनको ‘कुलघाती’ कहते हैं। वर्णसंकर ऐसे कुलघातियों को नरकों में ले जाता है। केवल कुलघातियों को ही नहीं, प्रत्युत कुल-परंपरा नष्ट होने से संपूर्ण कुल को भी वह नरकों में ले जाता है।
‘पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिंडोदकक्रियाः’- जिन्होंने अपने कुल का नाश कर दिया है, ऐसे इन कुलघातियों के पितरों को वर्णसंकर के द्वारा पिंड और पानी[3] न मिलने से उन पितरों का पतन हो जाता है। कारण कि जब पितरों को पिंड पानी मिलता रहता है, तब वे उस पुण्य के प्रभाव से ऊँचे लोकों में रहते हैं। परंतु जब उनको पिंड पानी मिलना बंद हो जाता है, तब उनका वहाँ से पतन हो जाता है अर्थात उनकी स्थिति उन लोकों में नहीं रहती।
पितरों को पिंड-पानी न मिलने में कारण यह है कि वर्णसंकर की पूर्वजों के प्रति आदर-बुद्धि नहीं होती। इस कारण उनमें पितरों के लिए श्राद्ध-तर्पण करने की भावना ही नहीं होती। अगर लोक-लिहाज में आकर वे श्राद्ध-तर्पण करते भी हैं, तो भी शास्त्रविधि के अनुसार उनका श्राद्ध तर्पण में अधिकार न होने से वह पिंड-पानी पितरों को मिलता ही नहीं। इस तरह जब पितरों को आदर बुद्धि से और शास्त्रविधि के अनुसार पिंड-जल नहीं मिलता, तब उनका। अपने स्थान से पतन हो जाता है।
|
|