महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
18.सारंग के बच्चे
फिर सब बच्चे प्रसन्न मुख से अग्नि की स्तुति करने लगे, मानों वेदों का अध्ययन किये हुए ब्राह्मण ब्रह्मचारी हों- "हे अग्निदेवता, हमारी माँ चली गई है। पिता को तो हम जानते ही नहीं। जब से अण्डा तोड़कर बाहर निकले थे, तभी से पिताजी के दर्शन नहीं हुए। धुएं की ध्वजा फहराने वाले अग्निदेव! अभी तो हमारे पर भी नहीं उगे हैं। हम अनाथ बच्चों के तुम्हीं रक्षक हो। तुम्हारी ही शरण लेते हैं। हमारा कोई नहीं है। हमारी रक्षा करो।" और आश्चर्य की बात हुई कि पेड़ पर जो आग लगी तो उन बच्चों को छुआ तक नहीं। सारा वन प्रदेश जलकर राख का ढेर बन गया पर चारों का कुछ न बिगड़ा। उनके प्राण बच गये। जब आग बुझ गई तो जरिता बड़े उद्विग्न भाव से पेड़ पर भागी आई। वहाँ देखती क्या है कि बच्चे कुशलपूर्वक आपस में बातें कर रहे हैं। उसके आश्चर्य और आनन्द का पार न रहा। एक-एक बच्चे को गले लगाया और बार-बार उनको चूमकर प्यार करती रही। उधर सारंग पंछी व्यथित हृदय से अपनी नई प्रेमिका लपिता के पास बैठा चीखकर कह रहा था- "मेरे बच्चे अग्नि की भेंट हुए होंगे। हाय, मेरे बच्चे जल गये होंगे।" इस पर लपिता आग-बबूला हो उठी। बोली, "अच्छा, यह बात है। मैं तो पहले से ही जानती थी कि मेरी बनिस्बत मेरी सौत की और उसके बच्चों की चिंता आपको अधिक है। तुम उसके पास जाना चाहते हो। पर आप ही ने तो कहा था कि जरिता के बच्चों को आग नहीं जला सकती, क्योंकि अग्नि देवता ने वरदान दिया है। तो फिर झूठ-मूठ क्यों चीखते चिल्लाते हो? यदि जरिता के पास जाने की इच्छा है तो सच्ची बात बता दो और खुशी से चले जाओ। अविश्वसनीय पति के धोखे में आई हुई कितनी ही अबलाओं की भाँति मैं भी दुखिया जंगल में फिरती रहूँगी। जाओ, शौक से चले जाओ।"
जरिता ने अपने पति की तरफ आँख तक उठाकर नहीं देखा। अपने बच्चों के बच जाने की खुशी में वह फूली न समा रही थी। कुछ देर बाद पति से बड़ी उदासीनता के साथ पूछा- "कैसे आना हुआ?" मन्दपाल ने और नजदीक आकर स्नेह से पूछा- "बच्चे कुशल तो हैं? इनमें बड़ा कौन है?" जरिता ने कहा- "कोई बड़ा हो या छोटा, आपको इससे मतलब? मुझे निःसहाय छोड़कर जिसके पीछे गये थे, उसी के पास चले जाओ और मौज उड़ाओ।" मन्दपाल ने कहा- "मैंने अक्सर देखा है, बच्चों की माँ होने पर कोई स्त्री अपने पति की परवाह नहीं करती। यही कारण है कि निर्दोष वसिष्ठ का भी उनकी पत्नी अरुन्धती ने एक बार बड़ा अनादर किया था।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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