महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
18.सारंग के बच्चे
मन्दपाल नाम के एक दृढ़व्रती ऋषि आजीवन विशुद्ध ब्रह्मचारी रहकर स्वर्ग सिधारे। जब वह स्वर्ग के द्वार पर पहुँचे तो द्वारपालों ने रोका और उन्हें यह कहकर लौटा दिया कि जिन्होंने अपने पीछे एक भी संतान न छोड़ी हो उनके लिये स्वर्ग का द्वार नहीं खुलता। तब ऋषि ने सारंग की योनि में जन्म लिया और जरिता नाम की सारंगा से सहवास किया। जरिता जब चार अंडे दे चुकी थी, तब ऋषि ने उसे छोड़ दिया और लपिता नाम की एक और सारंग चिड़िया के साथ रहने लगे। समय पाकर जरिता के चारों अण्डे फूटे और उसमें से चार बच्चे निकले। ऋषि के बच्चे होने के कारण उनमें स्वाभाविक विवेक था। यही कारण था कि उन्होंने अविचलित होकर अपनी माँ को यों धीरज बँधाया। माँ ने अपने बच्चों से कहा, "बच्चों! इस पेड़ के नजदीक एक चूहे का बिल है। मैं तुम्हें उठाकर बिल के द्वार पर छोड़ देती हूँ। तुम धीरे से बिल के भीतर घुसकर अंदर छिप जाना जिससे आग की गरमी न लगे। मैं बिल का द्वार मिट्टी से बंद कर दूँगी और जब आग बुझ जायेगी तो मिट्टी हटा दूँगी और तुम्हें बाहर निकाल लूँगी।" किन्तु बच्चों ने न माना। वे बोले- "बिल के अंदर जायेंगे तो वहाँ चूहा हमें खा लेगा। चूहे से खाया जाना अपमानजनक है। ऐसी मृत्यु से तो यही अच्छा है कि आग में ही जलकर मरें।" "अरे, इस बिल में चूहा नहीं है। थोड़ी देर हुए मैंने देखा था कि उसे एक चील उठा ले गई।" माँ ने बच्चों को समझाते हुए कहा। बच्चों ने फिर भी नहीं माना। कहा- "एक चूहे को चील उठा ले गई तो विपदा थोड़े ही दूर हो गई। कितने ही और चूहे बिल के अन्दर रहते होंगे, माँ। तुम जल्दी चली जाओ। आग की लपटें नजदीक आ रही हैं, कुछ ही क्षण में आग इस पेड़ को घेर लेगी। इससे पहले तुम अपने प्राण बचा लो। बिल के अंदर छिपना हमसे नहीं हो सकेगा। और हमारी खातिर तुम भी क्यों व्यर्थ जान गँवाती हो? आखिर हमारा-तुम्हारा नाता ही क्या है? हमने तुम्हारी कभी कुछ भलाई भी की है? कुछ नहीं। उलटे हम तो तुम्हें कष्ट ही पहुँचाते रहे, सो तुम हमें छोड़कर चली जाओ। अभी तुम्हारी जवानी नहीं बीती है। तुम्हें अभी और सुख भोगना है। यदि हम आग की भेंट हो गये तो निश्चय ही हमें स्वर्ग प्राप्त होगा। यदि बच गये तो आग के बुझ जाने पर तुम फिर पास आ सकती हो। इसलिये अब तुम चली जाओ।" बच्चों के यों आग्रह करने पर माँ उड़कर चली गई। थोड़ी देर में बच्चों वाले पेड़ पर भी आग लग गई पर बच्चे तनिक भी विचलित न हुए। बेखटके विपत्ति की प्रतीक्षा करते आपस में बातचीत करते रहे। जेठ ने कहा- "समझदार व्यक्ति आने वाली विपत्ति को पहले ही ताड़ लेता है और इस कारण विपत्ति आने पर घबराता नहीं।" छोटे बच्चे ने कहा- "तुम बड़े साहसी और बुद्धिमान हो। तुम्हारे जैसे धीर विरले ही मिलते हैं।" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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