महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
17.इन्द्रप्रस्थ
दुर्योधन की इस युक्ति को भी कर्ण ने ठुकरा दिया। फिर दुर्योधन ने कहा, "अगर यह न हो सके तो फिर द्रौपदी द्वारा ही पाँचों भाइयों में फूट पैदा कराई जा सकती है। प्रचलित रीति और मानव-स्वभाव के विरुद्ध एक स्त्री से पाँच आदमियों ने एक साथ विवाह कर लिया है। इसको निभाना बड़ा कठिन काम है। इससे हमारा काम और भी आसान हो सकता है। कामशास्त्र के निपुण लोगों की सहायता से पांडवों के मन में एक-दूसरे पर तरह-तरह के संदेह उत्पन्न किये जा सकते हैं। मेरा विश्वास है कि इससे हमारा काम अवश्य बन जायेगा। कुछ सुन्दर युवतियों के द्वारा कुंती के बेटों का मन भी फेरा जा सकता है, जिससे उसके चाल-चलन पर स्वयं द्रौपदी को शंका हो जाये। अगर ऐसा हो जाये तो स्वयं द्रौपदी का मन उनकी तरफ से हट जायेगा। यदि किसी एक पाण्डव के प्रति द्रौपदी का मन मैला हो जाये तो उस पाण्डव को चुपके से हस्तिनापुर ले आया जाये और फिर जो कुछ कराना हो उसके द्वारा कराया जाये।" इस पर कर्ण को हँसी आ गई। उसने कहा, "दुर्योधन! तुम्हें उल्टा ही सूझा करता है। चाल चलने और प्रपंच रचने से पांडवों को जीतने की आशा व्यर्थ है। जब वे यहाँ पर थे तब उन्हें अनुभव ही क्या था। तब तो वे उतने ही निःसहाय थे जितने पंख उगने से पहले पंछी के बच्चे होते हैं। जब उस निःसहाय अवस्था में भी तुम उनको अपनी चाल में न फंसा सके तो अब वह बात कैसे हो सकती है? अब एक साल बाहर रहने और दुनिया देख लेने से उन्हें काफी अनुभव प्राप्त हो चुका है। एक शक्ति सम्पन्न राजा के यहाँ उन्होंने शरण ली है। तिस पर उनके प्रति तुम्हारा वैर भाव उनसे छिपा नहीं है। इसलिये छल प्रपंच से अब काम नहीं बनेगा। आपस में फूट डालकर भी उनको हराना संभव नहीं। राजा द्रुपद धन के प्रलोभन में पड़ने वाले व्यक्ति नहीं हैं। लालच दिलाकर उनको अपने पक्ष में करने का विचार बेकार है। पांडवों का साथ वे कभी नहीं छोड़ेंगे। द्रौपदी के मन में पांडवों के प्रति घृणा पैदा हो ही नहीं सकती। ऐसे विचार की ओर ध्यान देना भी ठीक नहीं। हमारे पास केवल एक ही उपाय रह गया है और वह यह कि पांडवों की ताकत और अधिक बढ़ने से पहले उन पर हमला कर दिया जाये और उनको कुचल डाला जाये। अगर हम हिचकिचाते रहे तो ओर भी कितने राजा उनके साथी बन जायेंगे। यादव-सेना के साथ श्रीकृष्ण के पांचाल राज्य में पहुँचने से पहले ही हमें पांडवों पर चढ़ाई कर देनी चाहिये और हमें अचानक द्रुपद के राज्य पर टूट पड़ना चाहिये। तभी हम पांडवों की शक्ति मिटा सकेंगे, अन्यथा नहीं। मैदान में जौहर दिखलाना और अपने बाहुबल से काम लेना, यही क्षत्रियोचित उपाय है। कुचक्र रचने से काम नहीं चलेगा।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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