महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
83.अभिमंत्रित कवच
आचार्य के ये वचन सुनकर और उनके हाथों दैवी कवच प्राप्त कर दुर्योधन की हिम्मत बंधी। आचार्य के कहे अनुसार एक बड़ी सेना को लेकर वह अर्जुन के मुकाबले को चला। इधर अर्जुन कौरव -सेना को पीछे छोड़कर तेजी से आगे बढ़ता गया। बहुत दूर चले जाने के बाद श्रीकृष्ण ने देखा कि घोड़े थके हुए है। उन्होंने रथ खड़ा किया कि घोड़े जरा सुस्ता लें। इतने में विंद और अनुविंद नाम के वीरों ने अर्जुन पर आक्रमण किया। अर्जुन ने उनका मुकाबला किया और उनकी सेना तितर-बितर करके दोनों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद श्रीकृष्ण ने रथ से घोड़े खोल दिये। थोड़ी देर थकान मिटा लेने के बाद रथ जोतकर फिर जयद्रथ की ओर तेजी से चल दिये। दूरी पर दुर्योधन को आता देख श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सचेत करते हुए कहा- "धनंजय! देखो, पीछे दुर्योधन आ रहा है। चिरकाल से मन में क्रोध की जो आग दबा रखी है, आज उसे प्रकट करो। इस अनर्थ की जड़ को जलाकर भस्म कर दो। इससे अच्छा अवसर कभी नहीं मिलेगा। आज यह तुम्हारा शत्रु तुम्हारे बाणों का लक्ष्य बनने को आ रहा है। स्मरण रहे- यह महारथी है। दूर से ही आक्रमण करने की सामर्थ्य रखता है। अस्त्र-विद्या का कुशल जानकार है ही। जोश के साथ युद्ध करने वाला भी है। शरीर का गठीला और बली भी है।" यह कह श्रीकृष्ण ने रथ घुमा दिया और अर्जुन ने एकाएक दुर्योधन पर हमला कर दिया। इस अचानक आक्रमण से दुर्योधन जरा भी न घबराया। वह बोला- "अर्जुन! सुना तो बहुत है कि तुमने बड़े वीरोचित कार्य किये हैं, किंतु तुम्हारी वीरता का सही परिचय तो अभी तक हमें मिला नहीं है। जरा देखें कि तुममें कौन-सा ऐसा पराक्रम है कि जिसकी इतनी प्रशंसा सुनने में आ रही है।" और दोनों में घोर संग्राम छिड़ गया। "पार्थ! यह कैसे अचरज की बात है? क्या वजह है कि तुम्हारे चलाये बाण आज दुर्योधन को जरा भी चोट नहीं पहुँचा रहे हैं! गांडीव धनुष से बाण निकले और शत्रु पर उसका प्रभाव न हो! यह तो कभी नहीं देखा था। आज ऐसा क्यों हो रहा है? मुझे इस बात की कभी भी आशा न थी। अर्जुन! तुम्हारी पकड़ में ढील तो नहीं रहती? भुजाओं का बल तो कम नहीं हो गया? गांडीव को तनावट स्वाभाविक है? फिर क्या बात है जो तुम्हारे बाण दुर्योधन पर असर नहीं करते?" श्रीकृष्ण आतुर होकर बोले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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