महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
69.छठा दिन
इतने में अचानक भीमसेन को न जाने क्या सूझा। वह उठ खड़ा हुआ और अपने सारथी विशोक से बोला– "विशोक! तुम यहीं पर ठहरे रहो, मैं जरा आगे चलता हूँ और धृतराष्ट्र के इन दुष्ट लड़कों का काम तमाम करके लौटता हूँ। मेरे लौटने तक तुम यहीं पर खड़े रहना।" यह कहकर भीमसेन हाथ में गदा लेकर रथ पर से कूद पड़ा और शत्रुदल के बीच में जा घुसा। घोड़ों, सवारों एवं रथों को चकनाचूर करता हुआ वायुपुत्र भीमसेन दुर्योधन के भाइयों की ओर इस प्रकार बढ़ चला, मानो कराल काल हाथ में दण्ड लिये घूम रहा हो। धृष्टद्युम्न ने जब भीमसेन को रथ पर चढ़कर शत्रु-सेना में घूमते देखा था तभी वेग से उसका पीछा किया। पर भीमसेन के रथ को एक जगह ख़ाली खड़ा देखा। वहाँ रथ पर अकेला सारथी ही था, भीमसेन न था। "विशोक! भीमसेन कहाँ गये?" सारथी विशोक ने द्रुपद-राजकुमार को नमस्कार करके निवेदन किया– "सेनापति! पाण्डु-पुत्र मुझे यहीं ठहरने की आज्ञा देकर अपने हाथ में गदा लेकर अकेले इसी सेना-समुद्र में कूद पड़े हैं और धृतराष्ट्र के लड़कों की खोज में हैं। आगे का हाल तो मुझे मालूम नहीं।" यह सुनकर धृष्टद्युम्न शंकित हो उठा। उसे भय हुआ कि कहीं सारे कौरव-पुत्र एक साथ मिलकर भीमसेन पर हमला न कर दें। यह सोच पांडव-सेनापति भी स्वयं सेना में घुस पड़ा। भीमसेन की गदा की मार से जो हाथी-घोड़े मरे पड़े थे, उन्हीं के द्वारा भीम का पता लगाता हुआ धृष्टद्युम्न आगे बढ़ा। दूर शत्रुओं के समूह में भीमसेन दिखाई दिया। धृष्टद्युम्न ने देखा कि भीमसेन हाथ में गदा लिये भूमि पर खड़ा है। उसकी लाल-लाल आंखों से मानो चिनगारियां निकल रही हैं, सारा शरीर घावों से भरा है। शत्रु-दल के रथारूढ़ वीर, भीमसेन को चारों तरफ से घेरे हुए बाणों की बौछार कर रहे हैं। यह देखकर धृष्टद्युम्न का हृदय अभिमान एवं श्रद्धा से भर आया। वह रथ से कूद पड़ा और दौड़कर भीम को छाती से लगा लिया और खींचकर अपने रथ में बिठा लिया। फिर उसके शरीर पर लगे बाणों को एक-एक करके निकालने लगा। यह देख दुर्योधन ने अपने सैनिकों से कहा– "देखते क्या हो! द्रुपदकुमार, भीमसेन पर हमला बोल दो। भले ही वे चुनौती स्वीकार करें या न करें। दोनों में से कोई बचने न पावे।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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