महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
48.विराट का भ्रम
उन्होंने दूतों को असंख्य रत्न एवं धन पुरस्कार के रुप में देकर खूब आनंद मनाया। मंत्रियों ने अनुचरों को आज्ञा देकर कहा- "तुम लोग खूब आनंद मनाओ। राजकुमार जीत गये हैं। नगर को खूब सजाओ। राजा सुशर्मा को मैंने जो जीता, सो कोई बड़ी बात न थी। राजकुमार की महान विजय के आगे मेरी जीत कुछ भी नहीं है। राजवीथियों में ध्वजायें फहरा दो। मंगल वाद्य बजाने की आज्ञा दो। सिंह शिशु से निडर और पराक्रमी मेरे प्रिय पुत्र का धूमधाम से स्वागत हो, इसका प्रबंध करो। घर घर में विजय का उत्सव मनाया जाये।" इसके बाद राजा ने प्रसन्नता से अंत:पुर में जाकर कहा- "सैरंध्री चौपड़ की गोटें तो जरा ले आओ। चलो कंक महाराज से दो दो हाथ चौपड़ खेल लें। आज खुशी के मारे मैं पागल सा हुआ जा रहा हूँ। मेरी समझ में नही आता कि मैं अपना आनंद कैसे व्यक्त करुं।" दोनों खेलने बैठे। खेलते समय भी बातें होने लगीं। "देखा राजकुमार का शौर्य? विख्यात कौरव वीरों को मेरे बेटे ने अकेले ही लड़कर जीत लिया।" विराट ने कहा। "नि:संदेह आपके पुत्र भाग्यवान हैं, नहीं तो बृहन्नला उनकी सारथी बनती ही कैसे?" कंक ने कहा। विराट झुंझलाकर बोले- "संन्यासी! आपने भी क्या यह बृहन्नला बृहन्नला की रट लगा रक्खी है? मैं अपने कुमार की विजय की बात कर रहा हूँ और आप उस हीजड़े के सारथी होने की बड़ाई करने लगे।" यह सुन कंक ने धीरज से कहा- "आपको ऐसा नहीं समझना चाहिए। बृहन्नला को आप साधारण सारथी न समझें। जिस रथ पर वह बैठी वह कभी विजय पाये बगैर लौटा ही नहीं। उसके चलाये हुए रथ पर चढ़कर साधारण से साधारण व्यक्ति भी बड़े-से-बड़े योद्धाओं का सहज में ही हरा सकता है।" अब राजा से न रहा गया। अपने हाथ का पांसा युधिष्ठिर (कंक) के मुंह पर दे मारा और बोला- "ब्राह्मण संन्यासी! खबरदार, जो फिर ऐसी बातें की। जानते हो तुम किससे बातें कर रहे हो?" पासे की मार से युधिष्ठिर के मुख पर चोट आई और खून बहने लगा। सैरंध्री जल्दी से अपने उत्तरीय से उनका घाव पोंछने लगी। जब उत्तरीय खून से लथपथ हो गया तो पास रक्खे एक सोने के प्याले में उसे निचोड़ने लगी। "यह क्या कर रही हो? खून को सोने के प्याले में क्यों निचोड़ रही हो?" विराट ने क्रोध में पूछा। अभी वह शांत न हुए थे। सैरंध्री ने कहा-"राजन! संन्यासी के रक्त की जितनी बूंदें नीचे जमीन पर गिर जायेंगी उतने बरस आपके राज्य में पानी नहीं बरसेगा। इसी कारण मैंने यह खून प्याले में निचोड़ दिया है। कंक की महानता आप नहीं जानते।" इतने में द्वारपाल ने आकर खबर दी कि राजकुमार उत्तर बृहन्नला के साथ द्वार पर खड़े हैं। राजा से भेंट करना चाहते हैं। सुनते ही विराट जल्दी से उठकर बोले-" आने दो। आने दो।" कंक ने इशारे से द्वारपाल को कहा कि सिर्फ राजकुमार को लाओ, बृहन्नला को नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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