महाभारत कथा -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
43.अनुचर का काम
अपने बारे में यह कहने के बाद युधिष्ठिर ने भीम से पूछा- "भीमसेन! राजा विराट के यहाँ तुम कौन सा काम करोगे?" यह पूछते- पूछते युधिष्ठिर की आंखें भर आई। गदगद स्वर में कहने लगे-"यक्षों और राक्षसों को कुचलनेवाले भीम! तुम्हीं ने उस ब्राह्मण की खातिर बकासुर का वध करके एकचक्रा नगरी को बचाया था; हिडिंबासुर का तुम्हीं ने वध किया था; जटासुर का वध करके हमें जिलाया था। यह अनुपम बल, यह अदम्य क्रोध और विख्यात वीरता लेकर तुम कैसे मत्स्यराज के यहाँ दबकर रह सकोगे और कौन सी नौकरी करोगे?" भीमसेन बोला- "भाई साहब! आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं रसोई बनाने के काम में बड़ा ही कुशल हूँ। इसलिए मेरा खयाल है कि राजा विराट के यहाँ मैं रसोइया बनकर रह सकता हूँ। ऐसा स्वादिष्ट पदार्थ बनाकर राजा विराट को खिलाऊंगा जो उन्होंने कभी न खाये होंगे। मेरे काम से निश्चय ही वह बड़े खुश होंगे। जलाने के लिए जंगल से लकड़ी चीरकर मैं ले आया करुंगा। इसके अलावा राजा के यहाँ जो पहलवान आया करेंगे उनके साथ कुश्ती लड़ा करुंगा और उन्हें पछाड़कर राजा का मन बहलाया करुंगा।" भीमसेन के कुश्ती का नाम लेने से युधिष्ठिर का मन जरा विचलित हो गया। उन्हें इस बात का भय था कि भीमसेन कुश्ती लड़ने में कहीं कोई अनर्थ न कर बैठे। भीम ने यह बात तुरन्त ताड़ ली और समझाकर बोला- "भाई साहब, आप बेफ़िक्र रहिये। मैं किसी को जान से नहीं मारुंगा। हां, जरा उनकी हड्डियां चटखाकर उन्हें सताऊंगा जरूर, लेकिन किसी को खत्म नहीं करुंगा। कभी-कभी हठीले बैलों, भैंसों और जंगली जानवरों को काबू में करके भी विराट का मन बहलाया करुंगा।" इसके बाद युधिष्ठिर ने अर्जुन से पूछा- "भैया अर्जुन, तुम्हें कौन सा काम करना पसन्द है। तुम्हारी वीरता और क्रान्ति तो छिपाये नहीं छिप सकती। कैसे उसे छिपा सकोगे?" अर्जुन बोला- "भाई साहब, मैं विराट के रनवास में रानियों व राजकुमारियों की सेवा-टहल किया करुंगा। उर्वशी से मुझे नपुंसकत्व का शाप भी मिला है। जब मैं देवराज के यहाँ गया हुआ था, उर्वशी ने मुझसे प्रेम याचना की थी। मैंने यह कहकर इनकार कर दिया कि आप मेरे लिए माता के समान हैं। इससे नाराज होकर उसने मुझे शाप दे दिया कि तुम्हारा पुरुषत्व नष्ट हो जाये। इसके बाद देवराज इन्द्र ने अनुग्रह करके मुझे बताया कि, तुम जब चाहो तभी, केवल एक ही बरस के लिए उर्वशी के शाप का यह प्रभाव तुम पर रहेगा। वही शाप इस समय हमारा काम देगा। मैं सफेद शंख की चूड़ियां पहन लूंगा। स्त्रियों की भाँति चोटी गूंथ लूंगा और कंचुकी भी पहन लूंगा। इस प्रकार विराट के अन्त:पुर में रहकर स्त्रियों को नाचना और गाना भी सिखलाऊंगा। कह दूंगा कि मैंने युधिष्ठिर के रनिवास में द्रौपदी की सेवा में रहकर यह हुनर सीख लिया है।" यह कह कर अर्जुन द्रौपदी की ओर देखकर मुस्करा दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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