श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी58. सप्तप्रहरिया भाव
भक्तों की आँखों में यकाचैंध छा जाता, किंतु उस रूप से दृष्टि हटाने को तबीयत नहीं चाहती थी। इस प्रकार सभी भक्त बहुत देर तक पत्थर की निर्जीव मूर्तियों की भाँति स्तब्ध-भाव से चुपचाप बैठे रहे, उस समय कोई जोर से साँस तक नहीं लेता था, यदि एक सूई भी उस समय गिर पड़ती, तो उसकी भी आवाज सबको सुनायी देती। उस नीरव निस्तब्धता को भंग करते हुए प्रभु ने गम्भीर भाव से कहना आरम्भ किया- ‘भक्तवृन्द! हम आज तुम सब लोगों की मनःकामना पूर्ण करेंगे। आज तुम लोग हमारा विधिवत अभिषेक करो।’ प्रभु की ऐसी आज्ञा पाते ही सभी को अत्यन्त ही आनन्द हुआ। श्रीवास के आनन्द की तो सीमा ही न रही। वे प्रेम के कारण अपने आपे को भूल गये। जिस प्रकार कोई चक्रवर्ती राजा किसी कंगाल के प्रेम के वशीभूत होकर सहसा उसकी टूटी झोंपड़ी में स्वयं आ जाय, उस समय उसकी जो दशा हो जाती है, उससे भी अधिक प्रेममय दशा श्रीवास पण्डित की हो गयी। वे आनन्द के कारण हक्के-बक्के-से हो गये। शरीर की सुधि भुलाकर स्वयं ही घड़ा उठाकर गंगा जी की ओर दौड़े, किंतु बीच में ही प्रेम के कारण मूर्च्छित होकर गिर पड़े। तब उनके दास-दासी बहुत-से घड़े लेकर गंगाजल लेने के लिये चल दिये। बहुत-से भक्त भी कहीं-कहीं से घड़ा माँगकर गंगाजल लेने के लिये दौड़े गये। बहुत-से घड़ों में गंगाजल आ गया। भक्तों ने प्रभु को एक सुन्दर चैकी पर बिठाकर उनके सम्पूर्ण शरीर में भाँति-भाँति के सुगन्धित तैलों की मालिश की। तदनन्तर सुवासित जल के घड़ों से उन्हें विधिवत स्नान कराया। अद्वैताचार्य और आचार्यरत्न प्रभृति पण्डितश्रेष्ठ महापुरुष स्नान के मन्त्रों का उच्चारण करने लगे। भक्त बारी-बारी से प्रभु के श्रीअंग पर गंगाजल डालते जाते थे और मन-ही-मन प्रसन्न होते थे। इस प्रकार घंटों तक स्नान ही होता रहा। जब सभी ने अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार स्नान करा दिया तब प्रभु के श्रीअंग को एक महीन सुन्दर स्वच्छ वस्त्र से खूब पोंछा गया। उसी समय श्रीवास पण्डित अपने घर में से नूतन महीन रेशमी वस्त्र निकाल लाये। उन सुन्दर वस्त्रों को भक्तों ने विधिवत प्रभु के शरीर में पहनाया और फिर उन्हें एक सजे हुए सुन्दर सिंहासन पर विराजमान किया। प्रभु के सिंहासनारूढ़ हो जाने पर भक्तों ने बारी-बारी से प्रभु के अंगों में केसर, कपूर तथा कस्तूरी मिले हुए चन्दन का लेप किया। चरणों में तुलसी ओर चन्दन चढ़ाया। मालाएँ घर में थोड़ी ही थीं, यह समझकर कुछ भक्त उसी समय बाजार में दौड़े गये और बहुत-सी सुन्दर-सुन्दर मालाएँ जल्दी से खरीद लाये। सभी ने एक-एक करके प्रभु के गले में मालाएँ पहनायीं। भक्तों के चढ़ाये हुए पुष्पों से प्रभु के पादपद्म एकदम ढक गये और मालाओं से सम्पूर्ण गला भर गया। प्रभु ने सभी भक्तों को अपने करकमलों से प्रसादीमाला प्रदान की। प्रभु की उस प्रसादीमाला को पाकर भक्त आनन्द के साथ नृत्य करने लगे। |