श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी91. श्रीगोपीनाथ क्षीरचोर
यस्मै दातुं चोरयन् क्षीरभाण्डं भक्तों के सहित आनन्द-विहार करते-करते जलेश्वर, ब्रह्मकुण्ड, मन्दार आदि तीर्थो में दर्शन-स्नान करते हुए महाप्रभु रेमुणाय नामक तीर्थ में पहुँचे। वहाँ जाकर क्षीरचोर गोपीनाथ भगवान के मन्दिर में जाकर प्रभु ने भगवान के दर्शन किये। प्रभु आनन्द में विभोर होकर गोपीनाथ भगवान की बड़े ही करुण-स्वर में स्तुति करने लगे। स्तुति करते-करते वे प्रेम में बेसुध हो गये। अन्त में उन्होंने भगवान के चरण-कमलों में साष्टांग प्रणाम किया। उसी समय भगवान् के शरीर से एक पुष्पों का बड़ा भारी गुच्छा निकलकर ठीक प्रभु के मस्तक के ऊपर गिर पड़ा। सभी दर्शनार्थी तथा पुजारी प्रभु के ऐसे भक्तिभाव को देखकर अत्यन्त ही प्रसन्न हुए और महाप्रभु के प्रेम की सराहना करने लगे। प्रभु ने उस पुष्प-गुच्छ को भगवान की प्रसादी समझकर भक्ति-भाव से सिर पर धारण कर लिया और बहुत देर तक भक्तों के सहित मन्दिर में संकीर्तन करते रहे। अन्त में वहीं पर रात्रि में विश्राम भी किया। नित्यानन्द जी ने पूछा- ‘प्रभो ! इन श्रीगोपीनाथ भगवान का नाम ‘क्षीरचोर’ क्यों पड़ा है?’ प्रभु ने हँसकर उतर दिया- ‘आपसे क्या छिपा होगा? गोपीनाथ भगवान को क्षीरचोर बनाने वाले आपके पूज्यपाद गुरुदेव और मेरे गुरु के भी गुरु श्री मन्माधवेन्द्रपुरी जी महाराज ही हैं। उनके मुख से आपने ‘क्षीरचोर’ भगवान की कथा अवश्य ही सुनी होगी। किन्तु फिर भी आप अन्य भक्तों के कल्याण के निमित्त मेरे मुख से इस कथा को सुनना चाहते हैं तो जिस प्रकार मैंने अपने पूज्यपाद गुरुदेव श्रीईश्वरीपुरी के मुख से सुनी है, उसे आपको सुनाता हूँ। ऐसी कथाओं को तो बार-बार सुनना चाहिये। इन कथाओं के श्रवण से भगवान के पादपद्मों में प्रीति उत्पन्न होती है और भगवान की भक्तवत्सलता के विषय में दृढ़ भावना होती है कि वे अपने भक्तों की इच्छा-पूर्ति के निमित्त सब कुछ कर सकते हैं। ऐसी कथाओं के सम्बन्ध में यह कभी भी न कहना चाहिये कि यह तो हमारी सुनी हुई है, इसे फिर क्या सुनें। जैसे एक दिन भरपेट भोजन कर लेने पर दूसरे दिन फिर उसी प्रकार के भोजन करने की इच्छा होती है, इसी प्रकार भक्तों को भगवान के सम्बन्ध की कथाएं सुनने में कभी उपेक्षा न करनी चाहिये, वे जितनी भी बार सुनने को मिल सकें, सुननी चाहिये। भक्त और भगवत-सम्बन्धी कथाओं के सम्बन्ध में सदा अतृप्त ही बने रहना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जिन्हें चोरी से क्षीर का पात्र देने से साक्षात गोपीनाथ भगवान क्षीरचोर कहलाये, जिनके प्रेम के प्रभाव से साक्षात श्रीगोपाल जी प्रकट हुए, उन महामान्य श्रीमन्माधवेन्द्रपुरीजी के चरणों में हम प्रणाम करते हैं। चै. च. म. ली. 4/1