श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी174. श्री श्री निवासाचार्य जी
आचार्य श्री निवास जी के पूजनीय पितृदेव श्री चैतन्यदास बर्दवान जिले के अन्तर्गत चाकन्दी नामक ग्राम में रहते थे। वे श्री चैतन्यदेव के अनन्य भक्तों में से थे। असल में उनका नाम तो था गंगाधर भट्टाचार्य, किन्तु श्री चैतन्य के प्रेम-बाहुल्य के कारण लोग इन्हें ‘चैतन्यदास’ कहने लगे थे। ईश्वर की इच्छा बडी ही प्रबल होती है। वृद्धावस्था में चैतन्यदास जी को सन्तान का मुख देखने की इच्छा हुई। विवाह तो इनका बहुत पहले ही हो चुका था, इनकी धर्म पत्नी श्री लक्ष्मीप्रिया जी बड़ी ही पतिपरायणा सती-साध्वी नारी थीं। वे अपने पति को संसारी विषयों से विरक्त देखकर खिन्न नहीं होती थीं। पति की प्रसन्नता में ही ये अपनी प्रसन्नता समझतीं। इस वृद्धावस्था में दम्पत्ति को पुत्र-दर्शन की लालसा हुई। दोनों ही पति-पत्नी पुरी में महाप्रभु के दर्शनों के लिये गये। महाप्रभु ने आशीर्वाद दिया कि ‘तुम्हारे जो पुत्र होगा, उसमें हमारी शक्ति का अंश रहेगा, वह हमारा ही दूसरा विग्रह होगा।’ महाप्रभु का वरदान अन्यथा थोड़ी ही हो सकता था। इसके दूसरे वर्ष लक्ष्मीप्रिया जी ने चाकन्दी में एक पुत्ररत्न प्रसव किया। माता-पिता ने उसका नाम रखा श्रीनिवास। वे ही श्रीनिवास आगे चलकर श्रीनिवासाचार्य के नाम से भक्तों में अत्यधिक प्रसिद्ध हुए। श्री निवास बाल्यकाल से ही बुद्धिमान, सुशील, सौम्य और मेधावी प्रतीत होते थे। सत्रह-अठारह वर्ष की अल्पावस्था में ही ये व्याकरण, काव्य तथा अलंकार-शास्त्रों में पारंगत हो गये थे। इनकी ननसाल जाजिग्राम में थी, इनके नाना श्री बलरामाचार्य भी परम भक्त और सच्चे वैष्णव थे। इनकी माता तो बड़ी पतिपरायणा और चैतन्य-चरणों में श्रद्धा रखने वाली थीं। बाल्यकाल से ही उसने अपने प्रिय पुत्र श्री निवास को चैतन्य लीलाएं कण्ठस्थ करा दी थीं। बच्चे के हृदय में बाल्यकाल की जमी हुई छाप सदा के लिये अमिट-सी हो जाती है। श्री निवास के हृदय में भी चैतन्य की मनमोहिनी मूर्ति समा गयी। वे चैतन्य–चरणों के दर्शनों के लिये छटपटाने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जो साक्षात श्री चैतन्यदेव के प्रेम के दूसरे विग्रह समझे जाते हैं, जो चैतन्यदेव के ही समान सुन्दर, सौम्य और लोगों के मन को हठात अपनी ओर आकर्षित करने वाले थे, उन आचार्य प्रवर श्री गोपालभट्ट जी के प्रिय शिष्य श्री निवासाचार्य के चरणों में मैं प्रणाम करता हूँ। प्र. द. ब्र.