श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी47. निमाई के भाई निताई
विधि का विधान भी बड़ा ही विचित्र है, कभी-कभी एक ही माता के उर से उत्पन्न हुए दो भाई परस्पर में शत्रुभाव से बर्ताव करते हुए देखे गये हैं। वालि-सुग्रीव, रावण-विभीषण, कर्ण-अर्जुन आदि सहोदर भाई ही थे, किंतु ये परस्पर में एक-दूसरे की मृत्यु का कारण बने हैं। इसके विपरीत विभिन्न माता-पिताओं से उत्पन्न होकर उनमें इतना अधिक प्रेम देखने में आता है कि इतना किसी विरले सहोदर भाई में भी सम्भवतया न हो। इन सब बातों से यही अनुमान किया जाता है कि प्रत्येक प्राणी पूर्वजन्म के संस्कारों से आबद्ध हैं। जिसका जिसके साथ जितने जन्मों का सम्बन्ध हो, उसे उसके साथ उतने ही जन्मों तक उस सम्बन्ध को निभाना होगा। फिर चाहे उन दोनों का जन्म एक ही परिवार अथवा देश में हो या विभिन्न जाति-कुल अथवा ग्राम में हो। सम्बन्ध तो पूर्व की ही भाँति चला आवेगा। महाप्रभु गौरांगदेव का जन्म गौड़देश के सुप्रसिद्ध नदिया नामक नगर में हुआ। इनके पिता सिलहट-निवासी मिश्र ब्राह्मण थे, माता नवद्वीप के सुप्रसिद्ध पण्डित नीलाम्बर चक्रवर्ती की पुत्री थी। ये स्वयं दो भाई थे। बड़े भाई विश्वरूप इन्हें पाँच वर्ष का ही छोड़कर सदा के लिये चले गये। अपने माता-पिता के यही एकमात्र पुत्र थे, इसलिये चाहे इन्हें सबसे छोटा कह लो या सबसे बड़ा। इनकी माता के दूसरी कोई जीवित संतान ही विद्यमान नहीं थी। श्रीनित्यानन्द का जन्म राढ़ देश में हुआ। इनके माता-पिता राढ़ी श्रेणी के ब्राह्मण थे, वे अपने सभी भाइयों में बड़े थे। किंतु इनके छोटे भाइयों का कोई नाम भी नहीं जानता कि वे कौन थे और कितने थे? ये गौरांग के बड़े भाई नाम से प्रसिद्ध हुए और गौरभक्तों में संकीर्तन के समय गौर से पहले निताई का ही नाम आता है। भजो निताई गौर राधे श्याम। जपो हरे कृष्ण हरे राम।। इस प्रकार इन दोनों का पांचभौतिक शरीर एक स्थानीय रज-वीर्य का न होते हुए भी इनकी आत्मा एक ही तत्त्व की बनी हुई थी। इनका शरीर पृथक-पृथक देशीय होने पर भी इनका अन्तःकरण एक ही था, इसीलिये तो ‘निमाई और निताई’ दोनों भिन्न-भिन्न होते हुए भी अभिन्न समझे जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जिन्होंने किसी पुण्य-तीर्थों में रहकर किसी प्रकार का घोर और दुष्कर तप किया है, उन्हीं के यहाँ इन्द्रियों को वश में करने वाला, समृद्धिशाली धार्मिक अथवा विद्वान पुत्र उत्पन्न होता है। फिर चाहे वह तप किसी भी जन्म में क्यों न किया हो। बिना पूर्व जन्म के सुकृतों से गुणी अथवा धार्मिक पुत्र नहीं हो सकता। सु. र. भां. 94/6