श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी10. निमाई
तासामाविरभूच्छौरिः स्मयमानमुखाम्बुजः। पं. जगन्नाथ मिश्र और श्रीशची देवी की मानसिक प्रसन्नता का वही अनुभव कर सकता है जिसकी अवस्था महाराज दशरथ और जगन्माता कौसल्या की-सी हो। अथवा कंस का वध करने के अनन्तर देवकी और वसुदेव को जो प्रसन्नता हुई होगी उसी प्रकार की प्रसन्नता मिश्र-दम्पति के हृदय में विद्यमान होगी। शची देवी की क्रमशः आठ कन्याएँ प्रसव होने के कुछ काल के ही पश्चात् परलोकगामिनी बन चुकी थीं। इस वृद्धावस्था में दम्पति सन्तान-सुख से निराश हो चुके थे कि भगवान का अनुग्रह हुआ और विश्वरूप का जन्म हुआ। विश्वरूप यथा नाम तथा गुण ही थे, इनका रूप विश्व को मोहित करने वाला था, किन्तु बालोचित चांचल्य इनमें बिलकुल नहीं था, चेहरे पर परम शान्ति विराजमान थी। माता-पिता इस सर्वगुणसम्पन्न पुत्र के मुख-कमल को देखकर मन-ही-मन प्रसन्न हुआ करते थे। अब भगवान की कृपा का क्या कहना है! विश्वरूप के बाद दूसरे बालक को देखकर तो मिश्र-दम्पति अपने आपे को ही भूल गये थे। सब बालक 9 महीने या अधिक-से-अधिक 10 महीने गर्भ में रहते हैं, किन्तु गौरांग पूरे 13 महीने गर्भ में रहे थे। सात महीने में भी बहुत-से बच्चे होते हैं और वे प्रायः जीवित भी रहते हैं, किन्तु वे बहुधा क्षीणकाय ही होते हैं। बात यह है कि 6 महीने में गर्भ के बच्चे के सब अवयव बनकर ठीक होते हैं और सातवें महीने में जाकर उसमें जीवन का संचार प्रतीत होता हे। जीवन का संचार होते ही बच्चा गर्भ से बाहर होने का प्रयत्न करता है। जो माताएँ कमज़ोर होती हैं, उनका प्रसव सात ही महीनों में हो जाता है, किन्तु बहुधा सातवें महीने में बच्चे का प्रयत्न निर्बल होने के कारण असफल ही होता है। बाहर निकलने के प्रयत्न में बालक बेहोश हो जाता है और वह बेहोशी दो महीने में जाकर ठीक होती है। जो बच्चे 8 ही महीनों में हो जाते हैं, वे बचते नहीं हैं, क्योंकि एक तो पहली बेहोशी और दूसरी प्रसव की बेहोशी, इसलिये कमज़ोर बालक उन्हें सह नहीं सकता। 10 महीने का बच्चा खूब तन्दुरूस्त होता है। 13 महीने गर्भ में रहने के कारण गौरांग पैदा होते ही सालभर के-से प्रतीत होते थे। इनका शरीर खूब मजबूत था, अंग के सभी अवयव सुगठित और सुन्दर थे। तपाये हुए सुवर्ण की भाँति इनके शरीर का वर्ण था, छोटी-छोटी दोनों भुजाएँ खूब उतार-चढ़ाव की थीं। हाथ की उँगली कोमल और रक्त-वर्ण की बड़ी ही सुहावनी प्रतीत होती थी। छोटे-छोटे गुदगुदे पैर, मांस से छिपे हुए सुन्दर टखने, सुन्दर गोल-गोल पिंड़रियाँ और मनोहर ऊरूद्वय थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उन सबके मध्य में पीताम्बर पहने, गले में पुष्पों की माला धारण किये, मन्द-मन्द मुसकाने से सबों को प्रसन्न करते हुए प्राणिमात्र के मन को मोहित करने वाले कामदेव को भी अपने रूप-लावण्य से तिरस्कृत करते हुए प्रभु प्रकट हुए। श्रीमद्भा. 10/32/2