श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी131. श्री रूप और सनातन
महाधीरौ भक्तिवीरौ प्रेमपीयूषभाजनौ। जिस मनुष्य के हृदय में पश्चात्ताप है, वह कैसी भी दशा में क्यों न पहुँच गया हो वहीं से परम उन्नति कर सकता है, किन्तु जिसे अपने बुरे कर्मों पर दुःख नहीं होता, जो अपनी गिरी दशा का अनुभव नहीं करता, जिसे समय के व्यर्थ बीत जाने का पश्चात्ताप नहीं वह चाहे कितना भी बड़ा विद्वान हो, कैसा ही ज्ञानी हो, कितना भी विवेकी हो, वह उन्नति के सुन्दर शिखर पर कभी भी नहीं पहुँच सकता। जहाँ पूर्वकृत कर्मों पर सच्चे हृदय से पश्चात्ताप हुआ, जहाँ सर्वस्व त्यागकर प्यारे के चरणों में जाने की इच्छा हुई, वहीं समझ लो उस की उन्नति का श्री गणेश हो गया। वह शीघ्र ही शैलशिखर पर बैठे हुए अपने प्यारे के पादपद्यों को चूमने में समर्थ हो सकेगा। रूप और सनातन- इन दोनों भाइयों का प्राथमिक जीवन विषयी पुरुषों का-सा होने पर भी अन्त में ये पश्चात्ताप के प्रभाव से प्रभु के पादपद्यों तक पहुँच सके और उन्हीं की भक्ति के प्रभाव से वे जगन्मान्य महापुरुष हो गये। रूप-सनातन के पूर्वज कर्नाटक देश के रहने वाले थे। इनके प्रपितामह पद्यनाभ किसी कारण विशेष से कर्नाटक देश को छोड़कर नवहाटी (नवहट्ट)- में आकर रहने लगे। उनके पाँच लड़के और अठारह कन्याएँ हुईं। सब से छोटे पुत्र का नाम मुकुन्ददेव था। मुकुन्ददेव के कुमार देव नामक परमभागवत पुत्र हुए। वे प्रायः लेन-देन और वाणिज्य-व्यापार का काम करते थे, इसी के निमित्त इन्हें यशोहर जिले के अन्तर्गत फतेहाबाद में जाना-आना पड़ता था। परस्पर में कुछ जातीय विरोध उत्पन्न होने पर कुमार देव नवहट्ट को छोड़कर फतेहाबाद में ही आकर रहने लगे। यहाँ आकर इन्होंने मधाईपुर के हरिनारायण विशारद की कन्या रेवतीदेवी के साथ अपना विवाह कर लिया। रेवतीदेवी के गर्भ से तीन पुत्र हुए, वे तीनों ही परमभागवत वैष्णव-समाज के सर्वोत्कृष्ट शिरोमणि के समान हुए। माता-पिता ने इनके नाम अमर, सन्तोष और अनूप रखे। पीछे से ये ही रूप, सनातन और वल्लभ-इन नामों से प्रसिद्ध हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाधैर्यवान्, भक्ति के विषय में परम शूरवीर और प्रेमरूपी पीयूष के पात्र श्रीमान रूप और सनातन को हम प्रणाम करते हैं। प्र. द. व्र.