श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी50. अद्वैताचार्य के ऊपर कृपा
प्रभु के सम्मुख पहुँचने पर भी वे संज्ञाशून्य ही पड़े रहे और बेहोशी की ही हालत में लम्बी-लम्बी साँसें भरकर जोरों के साथ रुदन करने लगे। उन वृद्ध तपस्वी विद्वान पण्डित की ऐसी अवस्था देखकर सभी उपस्थित भक्त आनन्दसागर में गोते खाने लगे और अपनी भक्ति को तुच्छ समझकर रुदन करने लगे। थोड़ी देर के अनन्तर प्रभु ने कहा- ‘आचार्य! उठो, अब देर करने का क्या काम है, तुम्हारी मनःकामना पूर्ण हुई। चिरकाल की तुम्हारी अभिलाषा के सफल होने का समय अब सन्निकट आ गया। अब उठकर हमारी विधिवत पूजा करो’ प्रभु की प्रेममय वाणी सुनकर वे कुछ प्रकृतिस्थ हुए। भोले बालक के समान सत्तर वर्ष के श्वेत केशवाले विद्वान ब्राह्मण सरलता के साथ प्रभु का पूजन करने के लिये उद्यत हुए। जगन्नाथ मिश्र जिन्हें पूज्य और श्रेष्ठ मानते थे, विश्वरूप के जो विद्यागुरु थे और निमाई को जिन्होंने गोद में खिलाया था, वे ही भक्तों के मुकुटमणि महामान्य अद्वैताचार्य एक तेईस वर्ष के युवक के आदेश से सेवक की भाँति अपने भाग्य की सराहना करते हुए उसकी पूजा करने को तैयार हो गये। इसे ही तो विभूतिमत्ता कहते हैं, यही तो भगवत्ता है, जिसके सामने सभी प्राणी छोटे हैं। जिसके प्रभाव से जाति, कुल, रूप तथा अवस्था में छोटा होने पर भी पुरुष सर्वपूज्य समझा जाता है। अद्वैताचार्य ने सुवासित जल से पहले तो प्रभु के पादपद्मों को पखारा, फिर पाद्य, अर्ध्य देकर सुगन्धित चन्दन प्रभु के श्रीअंगों में लेपन किया, अनन्तर अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्यादि चढ़ाकर सुन्दर माला प्रभु के गले में पहनायी और ताम्बूल देकर वे हाथ जोड़कर गद्गदकण्ठ से स्तुति करने लगे। वे रोते-रोते बार-बार इस श्लोक को पढ़ते थे- श्लोक पढ़ते-पढ़ते वे और भी गौरांग को लक्ष्य करके भाँति-भाँति की स्तुति करने लगे। स्तुति करते-करते वे बेसुध-से हो गये। इसी बीच अद्वैताचार्य की पत्नी सीतादेवी ने प्रभु की पूजा की। प्रभु ने भावावेश में आकर उन दोनों के मस्तकों पर अपने श्रीचरण रखे। प्रभु के पदपद्मों के स्पर्शमात्र से आचार्यपत्नी और आचार्य आनन्द में विभोर होकर रुदन करने लगे। प्रभु ने आचार्य को आश्वासन देते हुए कहा- ‘आचार्य! अब जल्दी से उठो, अब देर करने का काम नहीं है। अपने संकीर्तन द्वारा मुझे आनन्दित करो।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ब्राह्मणों की पूजा करने वाले प्रभु के पादपद्मों में प्रणाम है। गौ और ब्राह्मणों का प्रतिपालन करने वाले भगवान के नमस्कार है। सम्पूर्ण जगत का उद्धार करने वाले श्रीकृष्णचन्द्र को प्रणाम है, भगवान गोविन्द के चरणों में कोटि-कोटि नमस्कार है। श्रीविष्णु. 1/11/65