श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी50. अद्वैताचार्य के ऊपर कृपा
आचार्य की ऐसी बात सुनकर रमाई पण्डित अपने घर चले गये। शाम के समय सभी भक्त आ-आकर श्रीवास पण्डित के घर एकत्रित होने लगे। कुछ काल के अनन्तर प्रभु भी पधारे। आज प्रभु घर में प्रवेश करते ही भावावेश में आ गये। भगवदावेश में वे जल्दी से भगवान के आसन पर विराजमान हो गये और जोरों के साथ कहने लगे- ‘नाड़ा शान्तिपुर से तो आ गया है, किंतु हमारी परीक्षा के निमित्त नन्दनाचार्य के घर छिपा बैठा है। वह अब भी हमारी परीक्षा करना चाहता है। उसी ने तो हमें बुलाया है और अब वही परीक्षा करना चाहता है।’ प्रभु की इस बात को सुनकर भक्त आपस में एक-दूसरे का मुख देखने लगे। नित्यानन्द मन-ही-मन मुसकराने लगे। मुरारी गुप्त ने उसी समय प्रभु की पूजा की। धूप, दीप, नैवेद्य चढ़ाकर सुगन्धित पुष्पों की माला प्रभु के गले में पहनायी और खाने के लिये सुन्दर सुवासित ताम्बूल दिया। इसी समय रमाई पण्डित ने सभी वृत्तान्त जाकर अद्वैताचार्य से कहा। सब वृत्तान्त सुनकर आचार्य चकित-से हो गये और प्रेम में बेसुध-से हुए गिरते-पड़ते श्रीवास पण्डित के घर आये। जिस घर में प्रभु विराजमान थे, उस घर में प्रवेश करते ही अद्वैताचार्य को प्रतीत हुआ कि सम्पूर्ण घर आलोकमय हो रहा है। कोटि सूर्यों के सदृश प्रकाश उस घर में विराजमान है, उन्हें प्रभु की तेजोमय मूर्ति के स्पष्ट दर्शन न हो सके। उस असह्या तेज के प्रभाव को आचार्य सहन न कर सके। उनकी आँखों के सामने चकाचौंध-सी छा गयी, वे मूर्च्छित होकर भूमि पर गिर पड़े और देहली से आगे पैर न बढ़ा सके। भक्तो ने वृद्ध आचार्य को उठाकर प्रभु के सम्मुख किया। |